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१३. पत्र : मणिलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
 
कार्तिक वदी ५, [ संवत् ] १९६६
 
[ दिसम्बर २, १९०९]
 

चि० मणिलाल,

जबतक तुम धर्म-नीतिपर दृढ़तासे चलोगे, और अपने कर्तव्यका पालन करते रहोगे, तबतक मुझे तुम्हारी किताबी शिक्षाके सम्बन्धमें कोई चिन्ता नहीं । शास्त्रोंमें जो यम और नियम बताये गये हैं, उनका पालन किया जाये, इतना ही काफी है। तुम अपने शौकको पूरा करने या अपनी योग्यता बढ़ानेके लिए अपना किताबी ज्ञान बढ़ाना चाहो तो मैं उसमें सहायक बनूँगा। तुम वैसा न करोगे तो मैं तुमसे नाराज भी न होऊँगा । किन्तु मनमें जो भी एक निश्चय करो, उसपर दृढ़ रहनेका प्रयत्न करना । लिखना कि तुम इन दिनों छापेखाने में क्या-क्या कर रहे हो । किस समय उठते हो और खेतमें क्या काम करते हो, इत्यादि भी लिखना ।

बापूके आशीर्वाद
 

गुजराती पुस्तक 'महात्मा गांधीजीना पत्रो' डाह्याभाई पटेल द्वारा सम्पादित और सेवक कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशितसे ।

१४. भेंट : रायटरके प्रतिनिधिको
[ जोहानिसबर्ग,
 
दिसम्बर २, १९०९]
 

सर्वश्री गांधी और हाजी हबीब' आज शामको पार्क स्टेशन पहुँचे। गाड़ी आनेके बहुत पहले ही सैकड़ों भारतीय और चीनी वहाँ जमा हो गये थे । गाड़ी स्टेशनपर पहुँची, तब कोई २,००० भारतीय तथा चीनी और कतिपय यूरोपीय वहाँ उपस्थित थे । भीड़ अत्यन्त व्यवस्थित यो । तुमुल हर्ष-ध्वनिसे आनेवालोंका स्वागत किया गया और श्री गांधीपर पुष्पवर्षा की गई।

श्री गांधीने ट्रान्सवाल-सरकारको इस सौजन्यके लिए धन्यवाद दिया कि उसने कोई हस्तक्षेप किये बिना उनको फिरसे देशमें आने दिया। उन्होंने कहा कि मुझे आशा है, ट्रान्सवाल-सरकार विधानमें सुधार करनेके बारेमें शीघ्र ही उपाय करेगी। मेरे विचारसे

१. ये दोनों उस शिष्टमण्डल में शामिल थे जो इंग्लैंड गया था और हाल में ही लौटा था ।

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