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पत्र: मगनलाल गांधीको

ट्रान्सवाल-सरकारकी कार्रवाई भारतीयोंको नहीं, बल्कि साम्राज्यके स्थायित्वको चोट पहुँचा रही है। इंग्लैंड और भारतके लोग इस तथ्यके प्रति सजग होते जा रहे हैं कि यह संघर्ष न्यायपूर्ण है। वे ट्रान्सवाल-सरकारके इस कदमका हानिकर स्वरूप पहचान रहे हैं। भारतके लोग संघर्ष जारी रखनेकी आवश्यकताके प्रति विशेष रूपसे जागरूक है; जैसा कि पिछले कुछ दिनोंमें श्री टाटाके' उदार दानसे प्रमाणित है। उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर हर्ष हो रहा है कि हमारे साथ सहानुभूति रखनेवालोंमें यूरोपीयोंकी भी एक बड़ी संख्या है। अंग्रेज लोग अब इस संघर्षके औचित्यको समझ रहे हैं । श्री गांधी और उनके सभी समर्थक अपनेको बिलकुल स्वस्थ महसूस कर रहे थे। उनकी जमातके बहुतेरे लोग अपने उद्देश्यके लिए बलि होनेको तैयार हैं। इसके बाद लोग श्री गांधीको फ्रीडडॉर्प ले गये। वहाँ एशियाइयोंकी एक सभा थी । रवाना होनेसे पहले, उन्हें मालाएँ पहनाई गईं।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ४-१२-१९०९

१५. पत्र : मगनलाल गांधीको
गुरुवार रात्रि
 
[ दिसम्बर २, १९०९ को, या उसके बाद ]
 

चि० मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । वहाँ आजकल अव्यवस्था है, यह समझ गया हूँ। तुम्हें इस अव्यवस्थाके जो-जो कारण प्रतीत होते हों उन्हें, तुमने जैसा समझा हो वैसा, मुझे लिख भेजनेमें कोई हर्ज नहीं। मैं उनपर विचार कर लूंगा। तुम द्वेषभावसे कदापि न लिखोगे, इसका मुझे विश्वास है।

अभीतक मुझे बैंककी ओरसे कोई पत्र नहीं मिला। तुम जाकर उन्हें याद दिलाना; मैं उन्हें याद दिलाना फिर भूल गया हूँ । अवकाश मिलता ही नहीं। इतना काम निबटानेके बाद, यह करूंगा, यही करते दिन बीत जाता है।

जो लोग फीनिक्समें सम्मिलित हुए हैं उनका कर्तव्य है कि वे वहाँका रहन- सहन सुन्दर बनायें और 'इंडियन ओपिनियन' की खूब उन्नति करें, क्योंकि 'इंडियन ओपिनियन' के द्वारा लोगोंको शिक्षा मिलती है और परोपकार होता है। फीनिक्समें

१. देखिए “भेंट: केप आर्गसको”, पृष्ठ ८६ ।

२. अनुमान है कि यह पत्र, जिसके केवल पहले दो पृष्ठ उपलब्ध हैं, गांधीजीने इंग्लैंडसे लौटनेके बाद लिखा होगा । दूसरे अनुच्छेदमें बैंकका जो उल्लेख आया है उससे मालूम पड़ता है कि अबतक धनका जो कार्य छगनलाल गांधी करते थे उसका भार मगनलाल गांधीने सँभाल लिया था। यह पत्र लिखे जानेके समय छगनलाल गांधी भारतमें थे और इंग्लैंड जानेवाले थे ।


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