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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
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यदि कुछ लोग शक्ति-भर परिश्रम नहीं करते, चीजोंकी बरबादी करते हैं, अथवा झगड़े करते हैं, तो इससे निराश नहीं होना है। जो समझदार हैं उन्हें इस दोषको दूर करनेके लिए दुगना प्रयत्न करना है । 'गीता' का अध्ययन [. .] उसके शब्दोंकी ध्वनिका प्रभाव [ ] जो समझमें नहीं आती [ऐसी...] ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्रकी फोटो-नकल (एस० एन० ६०८१)।

१६. उत्तर : 'स्टार' को '


[ जोहानिसबर्ग ]
 
दिसम्बर ३, १९०९
 

महोदय,

मेरे देशवासी गत तीन वर्षोंसे जिस संघर्षमें लगे हैं, उसके विषय में आपको और आपके पाठकोंको एक बार फिर कष्ट देनेकी अनुमति चाहता हूँ ।

मुझे तो लन्दनमें भी वहाँके अपने अधिकांश देशवासियोंमें, आपकी तरह, संघर्ष से उकतानेका कोई लक्षण नहीं नज़र आया । निस्सन्देह उन्होंने इसका बोझ महसूस किया है। बेशक कुछ टूटे भी हैं और मंजिल तक पहुँचते-पहुँचते कुछ और भी टूट सकते हैं। किन्तु कल शाम स्टेशनपर जो प्रदर्शन हुआ, उसने महज मोटे तौरपर देखनेवालेके सामने भी यह स्पष्ट कर दिया होगा कि भारतीयोंकी लगभग सारी जमात संघर्षकी पृष्ठपोषक है और जिन्होंने कमजोरी या अन्य किसी कारणसे कानूनको मान लिया है, वे भी उसे सक्रिय सत्याग्रहियोंसे कम तीव्रताके साथ नापसन्द नहीं करते ।

किन्तु मैं आपके पाठकोंका ध्यान सत्याग्रहकी शक्ति या दुर्बलताके प्रश्नकी अपेक्षा उसकी विशेषताओंकी ओर खींचना चाहता हूँ | मैकबेथसे लिये गये आपके उद्धरणके बावजूद, मैं अपनी यह बात दोहरानेका साहस करता हूँ कि प्रवासके सम्बन्ध में हमारे कानूनमें समानताके सिद्धान्तकी पुनःस्थापना भले ही कर दी जाये और प्रशासनमें जान-बूझकर उसे दूसरी तरहसे बरता जाये, तो भी मैं इस आरोपका खण्डन करूँगा कि मैंने 'दो-अर्थी शब्दोंके प्रयोगसे किसीको 'भ्रममें डाला' है। ब्रिटिश संविधानके एक महान सिद्धान्तको 'प्रशासकीय चालाकी', 'मक्कारी' इत्यादि कहकर उड़ाया नहीं जा सकता। ये शब्द यहाँ संगत नहीं हैं। सिद्धान्तः भारतीय प्रशासन सेवा (सिविल सर्विस) सारी ब्रिटिश प्रजाके लिए खुली हुई है; व्यवहारतः भारतीयोंके लिए

१. २ दिसम्बर १९०९ के स्टारका यह प्रमुख लेख "श्री गांधीकी वापसी”, उक्त उत्तरके साथ आंशिक रूपसे ११ दिसम्बर १९०९ को इंडियन ओपिनियनमें उद्धृत किया गया था ।

२. पार्क स्टेशनपर; देखिए "मेंट: रायटरके प्रतिनिधिको ", पृष्ठ ८८-८९ ।

३. शेक्सपियरका एक नाटक । उद्धरणका आशय है कि ऐसे धूर्त मित्रोंपर विश्वास मत करो जो दो अर्थी बातें कहकर हमें छलते रहते हैं - जो हमसे वादे तो मीठे-मीठे करते हैं, लेकिन परोक्ष रूपसे हमारी आशाओंपर आघात करते रहते हैं ।


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