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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिस स्थितिमें वे रह रहे हैं उसे जनरल स्मट्सने युद्धको स्थिति बताया है; और हर युद्ध में वीरता-प्रदर्शनका सम्मान तो इने-गिने लोगोंको ही मिलता है और आखिरकार हर समाजमें ऐसे व्यक्तियोंकी संख्या जिन्हें उस समाजका प्रतिनिधि कहा जा सके अत्यन्त सीमित होती है। समाजके प्रत्येक वर्गसे डीपक्लूफ जेलमें अच्छेसे-अच्छे आदमी गये हैं। इसलिए हमें निराश होनेका कोई कारण नहीं। श्री गांधीने आशा प्रकट की कि भारतीय अपने नेताओंके श्रेष्ठ उदाहरणका अनुकरण करेंगे। वास्तवमें इंग्लैंड और भारतको भेजे गये शिष्टमण्डल सत्याग्रहको सच्ची भावनाके विपरीत थे; क्योंकि सत्याग्रहका आधार तो केवल त्याग और तपस्या है। लेकिन हमारे अन्दर कमजोरी भी तो है; इसलिए शिष्टमण्डल भेजकर प्रयत्नोंको बल देना जरूरी हो गया। शिष्टमण्डलके सदस्य इंग्लैंडसे लौट आये। यद्यपि उनकी यात्राका कोई अन्तिम परिणाम अभी नहीं निकला है, फिर भी वे निराश होकर नहीं लौटे हैं। अधिकारी अब संघर्षके सही स्वरूपको पूरी तरह पहचान गये हैं। इंग्लैंडमें ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जिसे इस लड़ाईके विरोधमें कुछ कहना हो। लॉर्ड ऍम्टहिलने पूरे दिलसे उनकी हिमायत की थी। वहाँका हर आदमी जानता है कि वे [ भारतीय ] प्रवासके सम्बन्धमें कानूनी और सैद्धान्तिक समानताके लिए लड़ रहे हैं। वहाँ लोगोंकी समझमें यह बात आ गई है कि लड़ाई ट्रान्सवालके मुट्ठी- भर भारतीय निवासियोंकी ही नहीं है; यह तो सारे भारत और वास्तवमें सारे साम्राज्यकी तरफसे लड़ी जा रही है। आज समस्त साम्राज्यकी इज्जत उनके [ट्रान्स- वालके भारतीयोंके ] हाथोंमें है। इसलिए उपनिवेशी इस संघर्षकी गम्भीरताको पूरी तरह समझ लें, यह उनके हितमें होगा। लड़ाईसे पहले, सन् १९०६ तक भारतीयोंको उपनिवेशमें प्रवेशके सम्बन्धमें समानताका अधिकार प्राप्त था । सन् १९०६ में भारतीयोंके निर्बाध प्रवेशपर नियन्त्रण लगानेकी नीतिको सरकारने स्वीकार किया और उसपर अमल भी शुरू कर दिया। भारतीयोंकी मांग है कि यह नीति छोड़ दी जाये और उनको पुनः पहलेकी तरह स्वतन्त्रतापूर्वक उपनिवेशमें आने दिया जाये। उनकी इस माँगपर आपत्ति नहीं की जा सकती। भारतीयोंके प्रवेशपर लगाया गया यह नियन्त्रण सारे भारतीय राष्ट्रका अपमान है। अतः भारतीयोंका कर्तव्य है कि वे इसका विरोध करें। जब भारतीयोंसे कहा जाता है कि तुम्हें ट्रान्सवालमें नहीं आने दिया जायेगा, क्योंकि तुम भारतीय हो तो उससे सूचित होनेवाला अपमान असह्य हो जाता है। भारतीयोंके लिए तो यह जीवन-मरणका प्रश्न है। श्री गांधीने कहा कि भारतीय जिस कानूनका विरोध कर रहे हैं उसके मूलमें निहित नीतिके खिलाफ लड़नेके लिए वे [श्री गांधी] और उनका विश्वास है कि अनेक अन्य भारतीय अपना जीवन अर्पित कर चुके हैं। श्री गांधीने कहा कि उनकी इस इंग्लैंड-यात्राका एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला है कि वहाँ एक ऐसा स्वयंसेवक दल संगठित हो गया है जो लोगोंको घर-घर जाकर समझायेगा, चन्दा एकत्र करेगा और ब्रिटिश प्रजातन्त्रके इस हृदय तक अपनी

१. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ५१६ ।


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