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भाषण : जोहानिसबर्गकी आम सभामें

आवाज पहुँचायेगा। ऐसे आन्दोलनके परिणाम बहुत व्यापक हो सकते हैं। बहुत-से उत्साही अंग्रेज और भारतीय इसमें शरीक हो गये हैं। [इसके बाद श्री पोलकके कार्यका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने कहा कि ] श्री पोलक बड़े त्यागी पुरुष हैं | उन्होंने [ भारतमें ] जो शानदार कार्य किया है उनका परिणाम बहुत सुन्दर हुआ है। श्री रतनजी जमशेदजी टाटाका उदारतापूर्ण दान उसीका फल है। इस प्रकारकी लड़ाई अधिक समय तक खिंच सकती है। और लड़ाई लम्बी खिचनेका अर्थ है अधिक कष्ट और इसलिए अधिक अनुशासन। लेकिन जिस लक्ष्यके लिए लड़ाई शुरू की गई है उसके लिए जो भी बलिदान किया जाये कम है। उन्होंने आशा प्रकट की कि एशियावासी भाई इस लड़ाईको विजय मिलने तक जारी रखेंगे।

श्री गांधीने ट्रान्सवालकी सरकारसे तथा उपनिवेशियोंसे भी अपील की कि वे इस सवालपर गम्भीरतासे विचार करें। अपना मत प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि उपनिवेशियोंको सूझबूझसे काम लेना चाहिए, अपनी साम्राज्य-निष्ठाका खयाल करना चाहिए और एशियाई समाजकी माँगोंको मंजूर कर लेना चाहिए। श्री गांधीने कहा कि उनका खयाल है कि करोड़ों भारतीयोंसे वे [उपनिवेशीय] यह तो नहीं कहना चाहते कि उनकी दृष्टिमें भारतीय तुच्छ कोटिके जीव हैं; फिर उनका दर्जा चाहे जो हो । प्रवेशके सम्बन्धमें असमानताका यह सिद्धान्त पहली बार ट्रान्सवालमें लागू किया गया है। अभी समय है कि इस कदमको पीछे हटा लिया जाये। अगर कानूनमें वांछित संशोधन कर दिया जाये तो वह न्यायका एक सीधा-सादा, शोभनीय कार्य होगा। परन्तु अगर ट्रान्सवाल अपनी वर्तमान नीतिपर कायम रहा तो श्री गांधीने आशंका व्यक्त की कि सरकारका यह कदम साम्राज्य की जड़ें तक हिला देगा।

ट्रान्सवालमें यूरोपीयोंकी तरफसे प्राप्त समर्थनका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने श्री हॉस्केनके' नेतृत्वमें यूरोपीय समिति द्वारा किये गये कामकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस समितिके सदस्योंको भी उपनिवेशके आदर्श उतने हो प्रिय हैं जितने दूसरोंको । परन्तु उन्हें भारतीयोंका साथ देना इन आदर्शोंके विपरीत नहीं लगता । उन्होंने स्वीकार किया कि यूरोपीय मित्रों तथा कार्यकर्ताओंकी सहानुभूति, सहयोग और प्रोत्साहनके बिना सत्याग्रह चलाना एक तरहसे असम्भव होता।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ११-१२-१९०९

१. ट्रान्सवालके 'प्रगतिवादी दल' (प्रोग्रेसिव पार्टी) के एक भारत-समर्थक नेता; देखिए खण्ड ८ और ९ ।

२. देखिए " प्रस्ताव : जोहानिसबर्ग की आम सभा , पृष्ठ ९८-९९ ।


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