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जोहानिसबर्ग में आम सभा

एक वक्त ऐसा भी आया था जब लगता था कि समझौता हो जायेगा । [ जनरल स्मट्सने ] कानूनको रद करना और बतौर मेहरबानी शिक्षित भारतीयोंको स्थायी निवासके प्रमाणपत्र देना भी स्वीकार किया पर यह बात हम मंजूर नहीं कर सकते थे। हम मेहरबानी नहीं, बल्कि हक चाहते हैं। कानूनकी रूसे हम नीची श्रेणीके माने जाते रहें लेकिन हमें आने दिया जाये इससे तो कोई बात नहीं बनती। यह तो स्वार्थकी बात होती । भारतीय होने के नाते हमें प्रवेशाधिकारसे वंचित रखना अपमानसे खाली नहीं है। जबतक यह अपमान दूर नहीं होता तबतक हमारा संकल्प अधूरा रहेगा। इसलिए अपने समाज और धर्मके हेतु, हमें इस संघर्षको चालू रखना ही होगा। हमारी माँग यह है कि कानूनमें भारतीयों और यूरोपीयों- दोनोंके लिए प्रवेशका समान अधिकार होना चाहिए। कानूनमें गवर्नरको ऐसे नियम बनानेका अधिकार दिया जा सकता है कि परीक्षा पास करनेपर भी किस जातिके कितने लोग आयेंगे । ऐसा होनेपर कानूनी समानता मिल जाती है और हमारी मर्यादाकी रक्षा भी होती है। परन्तु मेरा खयाल है कि हमारी यहाँकी कमजोरीके कारण वह हमें नहीं मिल सकी। भारतीयोंको यह भी याद रखना चाहिए कि हमें इससे अधिक प्राप्त होनेवाला नहीं है। अगर इतना मिल जाये तो वह भी हमारी खासी जीत कहलायेगी। और इतना हम लेकर ही रहेंगे।

श्री पोलकने भारतमें जो अच्छा काम किया है उसके प्रभावसे सभी परिचित हैं। इसी प्रभावके फल-स्वरूप श्री टाटाने २५,००० रुपये दिये हैं। इंग्लैंडमें अंग्रेज स्त्री-पुरुष तथा भारतीय सज्जन स्वयंसेवक बनकर घर-घर घूम रहे हैं।

इस प्रकार हमारा संघर्ष दुनियाकी नजरोंमें आया। हम प्रकाशमें आये। अब अगर उसे बन्द कर दिया जाये तो बड़ी शर्मकी बात होगी। लोगोंके दिलोंमें जब यह विश्वास घर कर गया है कि ट्रान्सवालके भारतीय हाथमें लिए हुए कामको कदापि न छोड़ेंगे, तब संघर्षको छोड़ बैठना भारतीय समाजपर लांछन लगाने-जैसा होगा |

फिर सोचना यह है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थिति बहुत कुछ इस संघर्षपर निर्भर करती है । संघर्षके जारी रहने के कारण ही नये कानून पास नहीं किये गये, नेटालमें परवाना कानूनमें संशोधन किया गया और रोडेशियामें कानून बनाना मुल्तवी रहा। यदि संघर्ष जारी रहेगा तो संघ-संसदके अस्तित्वमें आ जानेपर हमारे विरुद्ध कानून बनाना मुश्किल हो जायेगा । हमारा स्वार्थ भी इस तरह इसमें निहित है।

यह संघर्ष खिंचता जा रहा है, इससे हमारी हानि नहीं, लाभ है। इसके चलते रहनेसे हिन्दुस्तान जागता है, हमें अनुभव प्राप्त होता है तथा हम सार्वजनिक कार्य करनेकी तालीम प्राप्त करते हैं। इसलिए समाजसे मेरी प्रार्थना है कि जो दृढ़ हैं वे दृढ़ रहें; जो झुक चुके हैं वे अपनी कमजोरी साफ-साफ कबूल करें, और पैसेसे तथा अन्य प्रकारसे संघर्षको बढ़ावा । ऐसा करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है।

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