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आठ

डेकपर इन यात्रियोंका जीवन इतना कष्टप्रद हो गया था कि श्री नारायणस्वामी नामक एक यात्रीकी मृत्यु हो गई। गांधीजीको इस घटनासे बहुत चोट पहुंची और उन्होंने सरकारको कानूनकी आड़में हत्या करनेका दोषी घोषित किया।

नवम्बरम संघ-संसद्का पहला अधिवेशन होनेवाला था। गांधीजीने फिर संघर्षको समाप्त करनेकी अपनी शतोंका स्पष्टीकरण किया ("प्रस्तावित नया प्रवासी विधेयक", पृष्ठ, ३६९-७१)। लेकिन सरकारका रुख और सख्त हो गया था, जिसका संकेत देते हुए गांधीजीने चीनियोंकी एक सभामें कहा था, उसने तो "उनके बच्चों और स्त्रियों तक से लड़ाई छेड़ दी है" (पृष्ठ ३७६) । अपने पतिके जेलमें बन्दकर दिये जाने के बाद श्रीमती सोढाके पास जीविकाका कोई सहारा नहीं रह गया था और इसलिए उन्होंने टॉल्स्टॉय फार्म में सत्याग्रहियोंके परिवारोंके साथ रहनके सीमित उद्देश्यसे ट्रान्सवालमें प्रवेश किया। गांधीजी और ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री कालियाने सरकारको बहुत समझाया कि श्रीमती सोढाका इरादा प्रवेश या निवासके अपने अधिकारका दावा करनेका बिलकुल नहीं है, उन्हें ट्रान्सवालमें शुद्ध मानवीय सहानुभूतिकी भावनासे प्रेरित होकर ही बुलाया गया है। किन्तु उसने एक न सुनी और उन्हें सीमापर गिरफ्तार कर लिया गया।

सरकार और भारतीयोंके युद्धके इस ज्वारमें परावर्तनके आसार सन् १९११के आ पहुँचने पर प्रकट हुए। एल० डब्ल्यू रिचको लिखे हुए पत्र (पृष्ठ ४२४-५) में हम देखते हैं कि स्मट्ससे गांधीजीकी भेंट और बातचीत हो चुकी है और वे समझौतेके सम्बन्धमें आशावान् है। इसीके बाद भारत सरकारकी ३ जनवरीकी इस घोषणाका शभ संवाद भी आ पहुँचा कि उसने जलाई१,१९११से गिरमिटिया भारतीयोंका नटाल जाना बन्द कर देनेका निश्चय किया है।

२५ फरवरीको वह प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक प्रकाशित हुआ, जिसके जरिये जनरल स्मट्स भारतीय प्रश्नको सदाके लिए निपटा देनेकी बात कहते थे। विधेयकके बारेमें गांधीजीकी पहली प्रतिक्रिया आशा की थी, किन्तु स्मट्सके शब्दोंकी अनेकार्थताके पिछले अनुभवके कारण उसपर तद्वत् लोगोंकी राय मांगी गई और ज्ञात हुआ कि उसमें अनेक खामियाँ हैं और वह जैसा है, वैसा तो स्वीकार करने योग्य नहीं है। विधेयकमें जिस शैक्षणिक परीक्षाको व्यवस्था थी, संघमें उसके अन्तर्गत प्रवेश करनेवाले एशियाइयोको ट्रान्सवालके एशियाई पंजीयन अधिनियम (सन् १९०८ का अधिनियम ३६) और ऑरेंज फ्री स्टेटके संविधानके प्रकरण ३३के शासनसे मुक्त किया जाना चाहिए था, किन्तु विधेयक इस विषय में चुप था और इसलिए संघमें उनके संचारकी आजादी उस हद तक सीमित थी। पुनः छोटाभाईवाले मुकदमेमें सर्वोच्च न्यायालयके फैसलेके बावजूद विधेयक पंजीकृत एशियाइयोंके उन नाबालिग बच्चोंको, जो विधेयकके पास होने के समय ट्रान्सवालके बाहर रहे हों, और वैध निवासियोंकी पत्नियोंको प्रचलित कानूनकी सुरक्षा प्रदान नहीं करता था। गांधीजीने यह मानते हुए कि सम्भव है, जानबूझकर ऐसा नहीं किया गया हो, उसे सुधरवानेके लिए स्मट्सके साथ पत्र-व्यवहार आरम्भ किया और मार्चके अन्तिम दिनोंमें वे उनसे वैयक्तिक बातचीत करनेके लिए केप टाउन भी गये। जनरल स्मट्सने कहा तो यह था कि वे भारतीय समाजको


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