पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०१
पत्र: गो० कृ० गोखलेको

हम गिनतीमें सौ मानते हैं। ये अधिकारियोंका ध्यान अपनी ओर बलात् खींचेंगे । समाजके अधिकांश लोग सभाओंमें सम्मिलित होंगे, विरोध-प्रदर्शन करेंगे और कुछ लोग चन्दा देकर सहायता करेंगे। इस चन्देसे सत्याग्रहियोंके आश्रितोंकी देखरेख की जा सकेगी। संघर्षकी व्यापकताको इतना कम करनेका अर्थ है उसको अनिश्चित समय तक लम्बा खींचना, किन्तु चूँकि यह बहुत-कुछ अनुशासन-पालन के रूप में आरम्भ किया गया है, इसलिए हममें से वे लोग, जो इस बातको समझते हैं, कतई निराश होनेवाले नहीं हैं और तमाम उम्र तकलीफ उठाने के लिए तैयार हैं।

मैं ट्रान्सवाल या दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले अपने देशवासियोंको इस बातके लिए दोष नहीं दे सकता कि वे अब उतनी उदारतासे चन्दा नहीं दे रहे हैं जितनी उदारतासे अबतक देते रहे हैं। मेरे खयालसे आन्दोलनमें अबतक कमसे-कम १०,००० पौंड खर्च हो चुके हैं। इसमें मैंने सभी उपसमितियोंके वे खर्च भी शामिल कर लिए हैं जो केन्द्रीय संघ के विज्ञापित हिसाबमें नहीं दिये गये हैं; किन्तु मैंने उस भारी हानिको इसमें शामिल नहीं किया है जो वैयक्तिक रूपसे उठाई गई है। ऐसी अवस्थामें यदि बहुत-से लोग हिम्मत हार जायें और आर्थिक सहायता देनेसे भी इनकार कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं ।

किन्तु अब संघर्षका राष्ट्रीय महत्त्व भारतमें पहचाना जा रहा है, इसलिए मुझे लगता है कि हमें आर्थिक सहायता मिलेगी और वह भी खुले ढंगसे । मैं इससे जितना सम्भव हो उतना लाभ उठाना चाहता हूँ। मैंने आपके सामने लगभग सारी स्थिति रख दी है। इस समय डीपक्लूफ जेलमें कुछ अत्यन्त बहादुर भारतीय हैं, जिनमें सभी जातियोंके प्रतिनिधि हैं। मैं श्री रुस्तमजीको इनमें सबसे अग्रणी मानता हूँ | उन्हें जेलमें पड़े हुए नौ महीनेसे भी ज्यादा हो गये हैं। उनका स्वास्थ्य बहुत-कुछ चौपट हो गया है। मैं उनसे कल मिला था, वे इस बातपर दृढ़ हैं कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे जेलमें ही अपने प्राण दे देंगे। दूसरे व्यक्ति, एक सुसंस्कृत मुसलमान मुल्ला, इमाम अब्दुल कादिर बावजीर हैं। तीसरे एक व्यक्ति, प्रतिष्ठित मुसलमान व्यापारी, सूरत-निवासी श्री इब्राहीम अस्वात हैं। चौथे, श्री नानालाल शाह हैं; वे जैन हैं और उपस्नातक हैं। पाँचवें अहमदाबादके एक ब्राह्मण उमियाशंकर शेलत हैं। उन्होंने मैलेकी बाल्टियाँ ढोनेसे इनकार कर दिया है और अब तनहाईकी सजा भुगत रहे हैं। किन्तु कदाचित् सबसे ज्यादा बहादुर और वफादार, कभी न झुकनेवाले श्री थम्बी नायडू हैं। मेरी जानकारीमें कोई दूसरा भारतीय ऐसा नहीं जो इस संघर्षकी भावनाको उतनी अच्छी तरह समझता हो जितनी अच्छी तरह वे समझते हैं। वे पैदा तो मॉरिशसमें हुए थे, किन्तु हममें से अधिकांश लोगोंकी अपेक्षा अधिक भारतीय हैं। उन्होंने अपनी पूर्णाहुति ही दे दी है और मुझे एक चुनौती-भरा सन्देश भेजा है। उन्होंने कहा है कि चाहे मैं हथियार डाल दूं और लॉर्ड ऍम्टहिलके संशोधनसे कमपर समझौता कर लूं, किन्तु वे तब भी, कोई उनका साथ दे या न दे, सत्याग्रह करेंगे और ट्रान्स- वालकी जेलोंमें ही मर खप जायेंगे। मैं इस सूचीमें कदाचित् एक युवक, श्री सोराब- जीका नाम और जोड़ सकता हूँ। उन्होंने संघर्षके दूसरे चरणकी नींव डालने और


Gandhi Heritage Portal