एक शिक्षित भारतीयके रूपमें प्रवेशका दावा करनेके लिए एक बड़ी लाभप्रद नौकरी छोड़ दी । उनका भविष्य क्या होगा, इसकी चिन्ता किये बिना वे निश्चिन्त भावसे संघर्ष में आ गये थे, किन्तु वे पिछले अठारह महीनेसे लगभग जेलमें ही हैं। ऐसे और भी बहुत नाम गिनाये जा सकते हैं। इस समय जेलोंमें कुल मिलाकर लगभग तीस भारतीय सत्याग्रही हैं; यदि सरकार अन्य बहुत से लोगोंको अवसर दे तो निश्चय ही वे भी इस सम्मानकी इच्छा करेंगे। इस प्रकारके संघर्षकी सम्भावनाओंको आँक पाना बहुत कठिन है। मुझे आशा है कि मातृभूमि यथासम्भव हमारी सहायता के लिए हाथ बढ़ायेगी । भारतसे लगातार आर्थिक सहायताकी प्राप्तिका नैतिक प्रभाव भी बहुत बड़ा होगा । मुझे आशा है, मेरा लन्दनसे भेजा हुआ पत्र आपको यथासमय मिल गया होगा और आपने उसपर विचार कर लिया होगा ।
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आपसे जो अभी १६७३ पौंडकी रकम मिली है उसका उपयोग मैं अबतक लिये गये कर्जको चुकानेमें करना चाहता हूँ। इस कर्जका अधिकांश 'इंडियन ओपिनियन' के लिए लिया गया था। आपको खर्चका पूरा हिसाब भेजा जायेगा ।
टाइप की हुई गांधीजीके हस्ताक्षरसहित मूल अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ४७११) से; अनुलेख (पोस्टस्क्रिप्ट) उनके स्वाक्षरोंमें है।
कल मैंने श्री रुस्तमजीसे भेंट की। वे बहुत ही कमजोर हो गये हैं। फोक्सरस्टमें डॉक्टरकी रायसे उनके लिए जो खुराक निर्धारित हुई थी वह उन्हें यहाँ नहीं मिलती। पारसी -मेरा मतलब कट्टर पारसियोंसे है अपनी टोपियाँ कभी नहीं उतारते, परन्तु अब रुस्तमजीको अपनी टोपी उतारनेके लिए विवश किया गया है; यद्यपि उन्हें फोक्सरस्ट और हार्टपूर्टमें उसे पहिने रहनेकी अनुमति थी। उन्हें पत्थर तोड़नेका काम दिया गया है । वे एक शारीरिक व्याधिसे भी पीड़ित हैं। उनकी
१. तारीख ११-११-१९०९ का पत्र जिसमें गोखलेको ट्रान्सवाल आनेका निमन्त्रण दिया गया था; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ५३७-३८ ।
२. उपनिवेश- उपसचिवके नाम लिखे गये सर मंचरजी भावनगरीके तारीख ३१ दिसम्बर, १९०९ के पत्र में उद्धृत गांधीजीके पत्रका एक अंश; पूर्ण पाठ उपलब्ध नहीं है।
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