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टाटाका दान

आँखें भी कमज़ोर हो गई हैं। वे अत्यन्त दयनीय दिखाई दिये। मैं उन्हें डॉक्टरको दिखानेकी अनुमतिके लिए प्रार्थना-पत्र भेज रहा हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल आफिस रेकर्ड्स, सी० ओ० २९१/१४१ ।

२४. टाटाका दान

हिन्दुस्तान जागा है यह बात श्री रतनजी जमशेदजी टाटाके महान दानसे प्रकट है। उन्होंने २५,००० रु० की बड़ी रकम देकर संघर्षको बहुत बढ़ावा दिया है। आशा है कि अन्य भारतीय भी ऐसा ही करेंगे ।

पारसियोंकी दान-शीलता दुनिया भरमें प्रसिद्ध है। श्री टाटाने इस दानशीलताको और रोशन किया है। दक्षिण आफ्रिकामें जितना श्री रुस्तमजीने किया है उतना शायद ही दूसरे भारतीयने किया होगा। उनकी उदारता बहुश्रुत है। इसलिए उन्होंने इस बार जिस उदारताका परिचय दिया है उसमें कोई अचरजकी बात नहीं है ।

श्री टाटाने पूरे समाजपर उपकार किया है। समाज इससे कैसे उऋण होगा ? उनके इस उपकारसे हममें दस गुना साहस आना चाहिए। यह धन यह समझकर दिया गया है कि हम संघर्षको अन्ततक चलाते रहेंगे। अब हमारा काम है कि हम अपनेको इस उदारताके योग्य सिद्ध करें ।

अगर श्री टाटाके दानके ध्यानसे ही संघर्ष लम्बे अर्से तक चलता रहे तो भी सन्तोषकी बात मानी जायेगी। इसलिए नहीं कि दानकी राशि बहुत अधिक है बल्कि उसके पीछे जो भाव है और उसका संसारपर जो प्रभाव पड़ता है उसके लिए ।

श्री टाटाकी उदारतासे जहाँ सन्तोष होता है, वहाँ कुछ सावधानीकी भी जरूरत है। लोग दानमें प्राप्त हुई वस्तुका लाभ मुश्किलसे ही उठा पाते हैं। दानमें मिले हुए धनका सदुपयोग विरला ही कर सकता है। दान पाकर लोग कमजोर और खुदगरज हो जाते हैं। हमारा संघर्ष हमारे अपने बलपर आधारित है और उसका उद्देश्य अपने आपको सुधारना है। इसलिए अगर श्री टाटाकी इस सहायतासे लोग चुप होकर बैठ जायेंगे तो उससे लाभके स्थानपर हानि होना सम्भव है। हम आग्रह- पूर्वक कहना चाहते हैं कि इस दानके बाद भारतीय समाज आफ्रिकामें अपने फर्जके प्रति और भी सजग हो जाये ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ११-१२-१९०९


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