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२५.नेटालका परवाना अधिनियम

नेटालकी संसदने व्यापारिक परवाना अधिनियम में संशोधन किया है। भारतीय समाज अपीलकी व्यवस्थाका आग्रह कर रहा था। उसकी यह इच्छा आंशिक रूपमें पूरी हुई है। यदि कोई अधिकारी मौजूदा परवानेको नया करनेसे इनकार करेगा तो उसपर अब सर्वोच्च न्यायालयमें अपील की जा सकेगी। यह काफी सन्तोषकी बात है । जो घोर अत्याचार हो रहा था वह बन्द हो जायेगा । यह संशोधन नये परवानों- पर लागू नहीं होगा। परन्तु हम इसे कोई बड़ी अड़चन नहीं मानते। प्रयत्न करनेसे हमें सम्भवतः वह भी प्राप्त हो जायेगा ।

प्रत्येक भारतीयको जान लेना चाहिए कि यह परिवर्तन कैसे हुआ । इसके दो मुख्य कारण हैं: प्रथम, गिरमिटिया प्रथाको बन्द करनेकी हलचलको रोकनेकी इच्छा, दूसरे, नेटालमें सत्याग्रहकी आशंका। तीसरे, यह भी कारण माना जा सकता है कि नेटाल शिष्टमण्डलके जानेके फलस्वरूप यह परिवर्तन कुछ पहले ही हो गया। परन्तु हम भारतीय समाजका ध्यान पहले कारणकी ओर विशेष रूपसे खींचना चाहते हैं । यह संशोधन एक प्रकारका प्रलोभन है। अब सरकार व्यापारी समाजसे इस बातकी आशा करेगी कि वह गिरमिटियोंके आव्रजनको बन्द करनेके अपने आन्दोलनको त्याग दे। किन्तु हमें विश्वास है कि व्यापारी ऐसा कभी नहीं करेंगे। यदि वे ऐसा करेंगे तो यह सिद्ध हो जायेगा कि उन्होंने अपने कर्तव्यकी उपेक्षा की है।

हमारे विचारसे गिरिमिट प्रथा ही खराब है। परन्तु अभी तो गिरमिटियोंपर तीन पौंडका खूनी कर जारी है। इसे बन्द करवानेके लिए आन्दोलन होना ही चाहिए । नेटाल-सरकार यह चाहती है कि गिरमिट [ की अवधि ] हिन्दुस्तानमें समाप्त हो । [नेटाल 'मर्क्युरी'] ने साफ-साफ कहा है कि यदि परवानेकी कठिनाई न होती तो सम्राट्की सरकारने [ गिरमिटकी ] अवधि हिन्दुस्तान में समाप्त होनेके संशोधनको स्वीकार कर लिया होता। हम भारतीय समाजसे साग्रह अनुरोध करते हैं कि वह इस सम्बन्ध में अपने कर्तव्यसे पीछे न हटे ।

यह कानून सत्याग्रह के कारण ही बना है यह बात सहज ही प्रत्येक भारतीयकी समझमें आ सकती है। और यह बात जिनकी समझ में आ जायेगी वे, यह भी समझेंगे कि सत्याग्रहका प्रयोग प्रत्येक परिस्थितिमें किया जा सकता है ।

नेटालके भारतीयोंकी शिक्षाकी समस्या भी बहुत गम्भीर है। भारतीय समाजको इस सम्बन्धमें पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए है ।

इसलिए हम आशा करते हैं कि समाज यह मानकर सो नहीं जायेगा कि अब कुछ भी करना-धरना नहीं है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ११-१२-१९०९


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