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२६. पत्र : 'रैंड डेली मेल' को
जोहानिसबर्ग
 
दिसम्बर ११, १९०९
 

महोदय,

ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसके हृदयमें उपनिवेशकी और साम्राज्यकी भी भलाईका खयाल है, अवश्य ही ट्रान्सवालके भारतीयोंकी स्थितिपर लिखे गये आपके अग्रलेख के लिए कृतज्ञ होगा ।

क्या मैं उन लोगोंकी ओरसे, जिनका प्रतिनिधित्व करनेका मैं दावा करता हूँ, यह निवेदन कर दूं कि जो इस उपनिवेशके निवासी हैं और जिनकी शि ख्त की जानी चाहिए, उनके बारेमें जहाँतक हमारी सहायताकी आवश्यकता है, हम सदा उसके लिए तत्पर रहेंगे। मैं १९०८ के इतिहासकी याद नहीं दिलाना चाहता। वह अब भी उपनिवेशियोंकी स्मृतिमें ताजा है और उससे यह सिद्ध होता है कि हमारा समाज दुराग्रही नहीं है और जैसे हम इस समय अपने राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षाके लिए कष्ट उठा रहे हैं उसी प्रकार हम सरकारको सहायता देनेके लिए भी कष्ट उठानेको तैयार हैं।

आपका, आदि,
 
मो० क० गांधी
 

[ अंग्रेजीसे ]

रैंड डेली मेल, १३-१२-१९०९

२७. जोजेफ रायप्पन

श्री जोज़ेफ रायप्पनने, जो अभी-अभी नये बैरिस्टर होकर आये हैं, ट्रान्सवालके संघर्ष में शामिल होनेका निश्चय किया है। हम इसके लिए उन्हें बधाई देते हैं। उनका यह निश्चय सच्ची शिक्षाका परिचायक है। श्री जोजेफ रायप्पनके ट्रान्सवाल प्रवेशसे समाजको बहुत प्रोत्साहन मिलेगा, इसमें शंकाकी कोई बात नहीं है। श्री रायप्पनका उदाहरण अनुकरणीय है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १८-१२-१९०९
 

१. इस पत्रका सारांश इंडियन ओपिनियन, १८-१२-१९०९ के गुजराती स्तम्भोंमें छपा था ।

२. तारीख १०-१२-१९०९ का यह पत्र इंडियन ओपिनियन, १८-१२-१९०९ में आंशिक रू से उद्धृत किया गया था। इसमें ट्रान्सवालके भारतीयों की माँगोंको स्वीकार करनेकी सलाह दी गई थी।



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