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२८. पत्र : 'इंडियन ओपिनियन' को
दिसम्बर २०,१९०९
 

सेवामें सम्पादक

इंडियन ओपिनियन

महोदय,

दिसम्बर २०

मैं आशा करता हूँ कि इस पत्रके प्रकाशित होनेसे पहले मैं जेल पहुँच जाऊँगा । मेरा दूसरा लड़का ( मणिलाल) मेरे साथ रहता है। मैं कुछ समयसे उसे संघर्ष में शामिल करनेका विचार कर रहा था। उसका आग्रह था। अच्छी तरहसे विचार करने के बाद मुझे लगा कि उसे संघर्षमें शामिल करना उचित है। शुद्ध बुद्धिसे देशहितके लिए जेल जाने या उस तरह के दुःख उठानेको मैं सच्ची शिक्षा मानता हूँ। मैं तो जेलको महल मानता हूँ। तब जिनको मैं प्रिय मानता हूँ उनको इस अधिकारसे वंचित कैसे देखूं ? मेरा लड़का इतनी उम्र (१७ बरस) का हो चुका है कि वह अब अपनी बुद्धिका उपयोग कर सकता है। मैं तो सभी भारतीय माता-पिताओंसे, और सब भारतीय युवकोंसे भी, कहता हूँ कि जो व्यक्ति इस लड़ाई में शामिल होंगे वे कृतार्थ हो जायेंगे। लड़ाईका सच्चा लाभ तो लड़नेवाले ही उठाते हैं ।

जो फिलहाल जेलमें हैं, उनसे मैं निवेदन करता हूँ कि वे जैसे ही जेलसे बाहर निकलें फिर वैसे ही जेल जानेका इरादा रखें; घड़ी-भर भी दम न लें। अपवाद केवल श्री रुस्तमजीके सम्बन्धमें हो सकता है। यदि उनको [जेलसे छूटने पर ] तुरन्त गिरफ्तार न करें तो उनका एक मासके लिए डर्बन हो आना उचित है। किन्तु महीना पूरा होनेपर, उनकी तबीयत चाहे जैसी हो, मुझे तो ऐसा लगता है कि वापस [ ट्रान्सवाल] आ जाना ही उनका कर्तव्य होगा।

जो जेलके बाहर हैं उन्हें तुरन्त जेल जानेका विचार करना चाहिए। और कुछ नहीं तो वे जनवरी और फरवरी महीनोंमें तो आसानीसे जेलोंको भर दे सकते हैं ।

दूसरे लोग चाहे जेल जायें या न जायें, किन्तु जो भारतकी सेवाके लिए तैयार होना चाहते हैं उनका स्पष्ट कर्तव्य है कि वे पल-भर भी चैन न लें ।

आपका
 
मोहनदास करमचन्द गांधी
 

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २५-१२-१९०९

१. गांधीजीको आशंका थी कि वे २२ दिसम्बरको मणिलाल सहित छः ब्रिटिश भारतीयोंके साथ नेटालसे ट्रान्सवालमें प्रवेश करते समय गिरफ्तार कर लिये जायेंगे। देखिए "तार : एच० एस० एल० पोल्कको”,पृष्ठ १०८ ।

२. १८ वर्ष, देखिए "तार : एच० एस० एल० पोलकको”, पृष्ठ १०८ ।

३. देखिए अगले शीर्षककी अन्तिम पंक्तियाँ |


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