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२९. भाषण : डर्बनकी सभा'
[दिसम्बर २०, १९०९]
 
श्री गांधीका भाषण

इस सभामें पेश किये गये प्रस्तावोंसे पता चलता है कि आपमें उत्साह और लगन है । आप इस संघर्षके साथ एक रूप हो गये हैं। और ऐसा होना ही चाहिए, क्योंकि सबके हकोंका आधार यही संघर्ष है। यदि हम इसमें न जीत पाये तो इस मुल्कसे हमारी जड़ उखड़ जायेगी और कदाचित जड़ न उखड़ी तो हमें गुलामी भोगनी ही पड़ेगी। कुछ भी हो गुलामी तो भोग ही रहे हैं, जैसा कि आपके प्रस्तावोंके मज- मूनसे प्रकट है। यदि आपमें तनिक भी पौरुष हो तो आपको सत्याग्रही बनना चाहिए। उदाहरण के लिए, सब शिक्षक त्यागपत्र दे सकते हैं और सब माँ-बाप अपने बच्चोंको स्कूलोंसे निकाल ले सकते हैं । जो माँ-बाप यह मानते हैं कि उनके बच्चोंको सरकारी स्कूलोंमें शिक्षा मिलती है, वे अपने आपको खुद ठगते हैं। दूसरी बात गिरमिटियोंके सम्बन्धमें है। व्यापारिक परवानेके सम्बन्धमें अपील कर सकनेका हक एक रिश्वत है, यह कभी न भूलना। सरकार गिरमिटियोंको करारकी अवधि पूरी होनेपर वापस भेजे तो हमारे द्वारा विरोध न किया जाये, यह रिश्वत इसी उद्देश्यसे दी गई है। क्या कोई भारतीय इसे स्वीकार करेगा ? आपको इसका विरोध करना है। आपकी कोरी अर्जियाँ बेकार हैं। उनके पीछे बल होना चाहिए। वह बल सत्याग्रह है। जैसा जनरल स्मट्सने कहा है, सत्याग्रह एक प्रकारका युद्ध है। नेटालके भारतीयोंका सत्याग्रहमें भाग लिये बिना उद्धार नहीं है। आज इंग्लैंड हमारे पक्षमें है। श्री पोलकने भारतमें खलबली पैदा कर दी है। श्री टाटाकी सहायताके बाद माननीय श्री गो० कृ० गोखलेकी मार्फत ४०० पौंडकी सहायता मिलनेकी सूचना तारसे आई है ! यह खबर आज ही मुझे जोहानिसबर्गसे मिली है। श्री जोज़ेफ रायप्पन इंग्लैंडसे डिग्रियाँ लेकर आये हैं और सबसे अन्तिम डिग्री लेनेके लिए मेरे साथ जेल जा रहे हैं। दूसरे श्री वी० लॉरेंस भी हैं। वे अपने छोटे बच्चों और पत्नीको अकेला छोड़कर जेल जायेंगे। वे संघर्षकी खातिर अपनी नौकरी भी छोड़ रहे हैं। मुझे उनपर गर्व है। नागप्पनने जो नींव डाली है, उसे हम यों ही कैसे पड़ा रहने दें ? हमें उनके नामका स्मरण करके जबतक जीत न मिले तब तक लड़ना है। जीतसे किसीका निजी

१. यह सभा नेटाल इंडियन पेट्रियोटिक यूनियन द्वारा २०-१२-१९०९ को आयोजित की गई थी।

२. ये २५-१२-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किये गये थे।

३. इस प्रस्ताव में शिक्षकोंके इस्तीफेका उल्लेख है । यह इस्तीफा उन विधेयकोंके विरोधमें था, जिनमें नेटालके सरकारी तथा अनुदान प्राप्त करनेवाले स्कूलोंमें काम करनेवाले शिक्षकोंको पेंशन दी जानेकी व्यवस्था की गई थी, परन्तु इस पेंशन योजनामें भारतीय शिक्षकोंको शामिल नहीं किया गया था। (प्रस्ताव पाँचवाँ)

४. सर्वोच्च न्यायालय में अपील करनेका अधिकार थोक व्यापारी और खुदरा व्यापारी अधिनियम (होलसेल ऐण्ड रिटेल डीलर्स ऐक्ट) के संशोधनों द्वारा दिया गया था। (प्रस्ताव सातवाँ)


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