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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वार्थ सिद्ध न होगा; किन्तु उससे सारे भारतकी लाज रह जायेगी। यदि ऊपर बताये गये भाई या अन्य कोई भारतीय अपने लिए ट्रान्सवालमें बसनेका हक लेनेकी इच्छासे संघर्ष में आते हों तो मैं उन्हें शरीक न होनेको कहूँगा। हमारे साथ आनेवाले लोगोंमें एक दूसरे उपनिवेशीय भारतीय श्री सैमुअल जोज़ेफ हैं। इसी तरह, जर्मिस्टनसे श्री रामलाल सिंह संघर्षमें भाग लेनेके लिए सीमा लाँघकर आये हैं। वे भी हमारे साथ [ ट्रान्सवालमें ] प्रविष्ट होकर जेल जायेंगे। यदि हम तीन सालतक [ इस तरह ] लड़नेके बाद संघर्ष छोड़ देंगे तो यह हमारे लिए कलंककी बात होगी । कष्ट सहनके बिना कुछ नहीं मिलता । बालकके जन्मके वक्त माँको भी कष्ट होता है, वैसे ही भारतीयोंको इस समय कष्ट सहना पड़ रहा है। जेलके जीवनसे एक तरहकी शिक्षा मिलती है और मनोबल आता है। मैं उसे बड़ा लाभ गिनता हूँ और इसीलिए मैंने अपने दूसरे लड़के मणिलालको अपने साथ जेल ले जानेका निश्चय किया है। मणिलाल स्वयं जेल जाना चाहता है। जेलमें हमें सत्याग्रही अर्थात् अच्छे जीवनके व्रतियों (मिशनरियों) के रूपमें काम करना है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २५-१२-१९०९

३०. तार : एच० एस० एल० पोलकको'
[ जोहानिसबर्ग
 
दिसम्बर २२, १९०९]
 

जोज़ेफ रायप्पन, बैरिस्टर, केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ग्रेज्युएट; सैमुअल जोजेफ, हेडमास्टर भारतीय विद्यालय (इंडियन स्कूल ) ; डेविड ऐंड्र, क्लार्क, एक दुभाषिया (सबका जन्म दक्षिण आफ्रिकाका) : मणिलाल, श्री गांधीका अठारहवर्षीय द्वितीय पुत्र; रामलालसिंह और फज़नदार; ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष और मैंने बेरोक-टोक सीमा पार की । परन्तु हम किसी भी समय गिरफ्तार हो सकते हैं। मेरा खयाल है कि कांग्रेसके अवसरपर सनसनी न फैले इसलिए गिरफ्तारी स्थगित की गई है। श्री फज़नदार, यद्यपि उन्होंने स्वेच्छया पंजीयन कराया था, गत सप्ताह निर्वासित किये गये थे। उन्होंने पुनः प्रवेश किया । ट्रान्सवालके अधिकारियोंकी नीति यह जान पड़ती है कि स्वेच्छया पंजीकृत लोगोंको भी निर्वासित करके भारत भेज दिया जाये अर्थात् उन लोगोंको भी जिन्हें सरकार वैध रूपसे ट्रान्सवालका निवास

१. ट्रान्सवालमें भारतीयों के प्रति व्यवहारके बारेमें गोखलेने जो प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) के लाहौर अधिवेशनमें पेश किया था, उसका समर्थन करते हुए श्री पोलकने यह तार पढ़कर सुनाया था ।

२. दिसम्बर २२, १९०९ को ।


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