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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

काम आ सकती है। कानूनी स्थिति ऐसी ही है। नैतिक स्थिति यह है: हम खर्च पूरा नहीं कर पाते; मैं धन जुटाने में असफल रहा हूँ; हम प्रेस बन्द कर दें और अन्य साधनोंको आजमायें । यदि हम सफल नहीं होते और अपनी जमीनसे ही खर्च निकालनेकी कोशिशमें जान नहीं दे देना चाहते तो फिर हम इस प्रयोगसे हट जाते हैं या वे लोग हट जायेंगें जो असन्तुष्ट हैं। जब मालिक लोग देखते हैं कि उनके कारोबार में मुनाफा नहीं है, तब वे क्या करते हैं ? यहाँ आकर बसे हुए लोग वस्तुतः [ जमीनके ] मालिक ही हैं। हाँ, बहुमत चाहे तो जमीन बेची जा सकती है। मेरा खयाल है कि हमें अभी कोई अन्तिम निर्णय नहीं करना चाहिए ।

आपको याद होगा, मैंने एक बार कहा था कि केवल 'इंडियन ओपिनियन' को फीनिक्स संस्थाके सदस्य (सेटलर्स) या उनमें से कुछ अपने हाथमें लेना चाहें तो ले सकते हैं। इसीलिए [ ट्रस्टके दस्तावेज़में ] ऐसी धारा' रखी है। मैं बराबर ऐसा मानता रहा हूँ कि कमसे-कम हम में से अधिकांश आदर्शोंपर चलते ही रहेंगे। संस्थाके सदस्य (सेटलर्स) वे होंगे जो ट्रस्टके दस्तावेज़में जोड़ी हुई सदस्योंकी सूचीमें हस्ताक्षर करेंगे। पत्नियाँ और बच्चे ट्रस्टके अर्थमें 'सदस्य' नहीं हैं। पोलक और हरिलाल, जो इस योजनामें शामिल हुए हैं, सदस्य हैं । कुमारी श्लेसिन भी सदस्य हो सकती हैं। श्री डोक और कुमारी स्मिथ नहीं हैं ।

कमाईमें से जो खर्च चलाया जा सकता है, चलाया जायेगा। इस समय तो हमें केवल घाटा ही दीख पड़ रहा है। [ धाराकी ] व्याप्तिमें इस सीमा तक परिवर्तन कर दिया गया है कि सदस्योंको आय अथवा योग्यताके अनुसार नहीं, बल्कि उनकी आवश्यकताके अनुसार पैसा दिया जाता है।

मैं अभी भी संशोधन, परिवर्तन या परिवर्द्धनके लिए आपके ठोस सुझावोंकी प्रतीक्षा करूँगा ।

हृदयसे आपका
 
मो० क० गांधी
 

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकल । (सी० डब्ल्यू ० ४४११) से ।



१ और २. ट्रस्टके दस्तावेजका मसविदा उपलब्ध नहीं है, ट्रस्टके दस्तावेजके लिए देखिये खण्ड ९ ।

फीनिक्सकी योजनाके बारेमें कुछ जानकारीकी बातोंके लिए देखिए "पत्र : ए० एच० वेस्टको”, पृष्ठ १११-११३ ।



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