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३३. न्यायमूर्ति अमीर अलीका सम्मान

न्यायमूर्ति अमीर अलीका सम्राट्की ओरसे सम्मान किये जानेकी खबर हम पिछले हफ्ते दे चुके हैं। वे प्रिवी कौंसिलके सदस्य बनाये गये हैं। इससे उनको सम्राट्की परिषद् बैठनेका अधिकार मिला है। ऐसा सम्मान आजतक किसी दूसरे भारतीयको नहीं मिला; अर्थात् न्यायमूर्ति अमीर अली इस सम्मानके पहले अधिकारी हुए हैं। हम उनको बधाई देते हैं। हमारे पाठकोंको शायद मालूम होगा कि न्यायमूर्ति अमीर अली बहुत वर्षोंसे इंग्लैंडमें रह रहे हैं। वे इंग्लैंडमें अखिल भारतीय मुस्लिम लीगके अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वे दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति [ साउथ आफ्रिका ब्रिटिश इंडियन कमिटी ] के एक सदस्य हैं । यह हमारी प्रसन्नताका और भी बड़ा सबब है । उनके इस प्रकार सम्मानित किये जानेसे हमें अधिक प्रयत्न करनेकी प्रेरणा मिलती है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन,
 

२५-१२-१९०९

३४. पत्र: ए० एच० वेस्टको
बुधवार
 
दिसम्बर २९, १९०९ को या उससे पहले]
 

प्रिय श्री बेस्ट,

बहसमें पड़े बगैर मैं अपनी राय नीचे लिखे अनुसार देता हूँ :

स्वास्थ्य -- - जहाँतक सफाईका सम्बन्ध है, मैं कुछ नहीं कहूँगा । चिकित्सा- सम्बन्धी खर्चेके बारेमें मैं अपनी राय पहले ही दे चुका हूँ। सबके लिए उचित चिकित्साका खर्च [ हमारे] कारोवारसे निकलना चाहिए। उचित क्या है, यह रोगीकी सलाहसे हरएकके बारेमें पृथक रूपसे तय किया जाना चाहिए। यह योजना पारस्परिक विश्वासपर आधारित है और हम हरएकसे यह आशा जरूर रखते हैं कि वह न तो इरादतन बीमार पड़ेगा और न हमसे [ जरूरत न होते हुए भी ] खर्च उठानेको कहेगा। मुझे डॉक्टरकी आवश्यकता नहीं है, पर मैं अपने इस विचारको दूसरोंपर लाद नहीं सकता। इस निष्कर्षपर पहुँचनेमें मैं यह मानकर चला हूँ कि मानव-जीवनका

१. लगता है कि गांधीजीने यह पत्र इंग्लैंडसे लौटनेके बाद और इंडियन ओपिनियनके आकारमें परिवर्तन किये जाने (१-१-१९१०) से पहले लिखा था ।

२. देखिए "पत्र : ए० एच० वेस्टको ”, पृष्ठ ८१-८२ ।


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