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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सामान्य नियम स्वास्थ्य है, बीमारी नहीं। अगर डॉ० नानजी फीनिक्स नहीं आना चाहते, तो इस बारेमें किसी दूसरे डॉक्टरको कहा जाये ।

स्कूल--- स्कूलको ऐसा ही पड़ा रहने दिया जाये और जहाँतक सामग्रीका प्रश्न है, श्री गोरासे पूछना चाहिए कि वे उसका क्या करना चाहते हैं। मेरा सुझाव है कि आप स्वयं उनसे मिलें। इस समय तो पुरुषोत्तमदास अकेले ही स्कूलके लिए जो कुछ कर सकते हों सो करें ।

'इंडियन ओपिनियन' - इसका आकार सुझावके अनुसार बदल दिया जाना चाहिए । पत्रमें इसके लिए कोई क्षमा याचना करनेकी आवश्यकता नहीं है । अंग्रेजीके स्तम्भ घटा दिये जाने चाहिए। केवल व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ दी जायें; अग्रलेख या मत प्रकट करनेवाले लेख आदि न दिये जायें। सारी पाठ्यसामग्री कड़ाईके साथ संक्षिप्त की जानी चाहिए। सामग्रीको संक्षिप्त करनेकी कलामें शक्ति लगानी चाहिए । सामग्री इस तरह बाँटी जा सकती है : सत्याग्रह, नेटाल-सम्बन्धी टिप्पणियाँ, केप-सम्बन्धी टिप्पणियाँ आदि । बम्बईकी और अन्य स्थानोंकी सभाओंके विवरण काफी छोटे कर दिये जाने चाहिए। जिनसे संक्षेप किया जाये उन मूल कागजातको, यदि सम्भव हो तो, किताबकी शकलमें चिपका कर रख लेना चाहिए । अंग्रेजीके स्तम्भोंमें सिर्फ समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी निर्योग्यताओंके बारेमें समाचार और जिन मामलोंमें हमें दिलचस्पी है, उनको देना चाहिए। जब श्री पोलक वापस आ जायें तब, यदि पैसेकी सुविधा हो तो, वे पत्रका आकार-प्रकार बढ़ा सकते हैं। इस मदमें प्रतिमास कितनी आवश्यकता होगी, इस बारेमें श्री कैलेनबैकको सूचना दी जानी चाहिए। उत्तम तो यह होगा कि कुछ भी सहायता न माँगी जाये । गुजराती स्तम्भोंको घटाना नहीं चाहिए, परन्तु यदि गुजराती ग्राहकोंकी संख्या कम हो जाये, तब उनको भी किसी भी सीमा तक घटाया जा सकता है। मेरी और पोलककी गैरहाजिरीमें वहाँ इस बातका निर्णय केवल आप करेंगे ।

ग्राहकोंके उधार-खातेके बारेमें आप एक सीमा निर्धारित कर सकते हैं। श्री दाउद मुहम्मद' और दूसरे ऐसे विदेशी या स्थानीय [ग्राहकोंको ] मुफ्त या पृथक सूचीमें रखा जा सकता है । यह इसलिए कि जिससे पता रहे कि हमें उनसे पैसा लेना है। जिन्हें पत्र मुफ्त भेजा जाता है उनकी सूचीको आप जितना उचित समझें घटा सकते हैं ।

निन्दात्मक लेखोंके बारेमें आपको डरने या चिन्ताकी जरूरत नहीं है। ऐसे सब समाचारोंपर, जिनकी सच्चाईकी जिम्मेवारी आप नहीं ले सकते, उन लोगोंके हस्ताक्षर होने चाहिए जो उन्हें प्रेषित करते हैं। इस समय इस विषयपर कोई कानून पढ़नेकी जरूरत नहीं है। यदि मुझे कोई सरल पुस्तक मिली तो आपके

१. डबैनमें रहनेवाले एक भारतीय चिकित्सक, जो अक्सर श्रीमती गांधी तथा फीनिक्स में रहनेवालोंका इलाज करते थे ।

२. श्री इस्माइल गोरा, डर्बनकी अंजुमन इस्लामिया सोसाइटीके कार्यवाहक अध्यक्ष ।

३. नेटाल भारतीय समाजके एक नेता । एक समय नेटाल भारतीय कांग्रेसके सभापति और सत्याग्रही।

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