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पत्र: ए० एच० वेस्टको
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पास भेज दूंगा। किसी कानूनी सलाहकारकी आवश्यकता नहीं है । परन्तु आकस्मिक आवश्यकताको स्थितिमें श्री खाँ सलाह देंगे ।'

योजना - श्री काबाभाई और श्रीमती वेस्टको छोड़कर बाकी सबसे कहना चाहिए कि वे या तो इस योजनामें सम्मिलित हो जायें या चले जायें। मेरी यह राय इतनी दृढ़ है कि मैं वतनी मजदूरोंके बिना काम चला लूंगा। हम उतना ही करेंगे जितना सदस्योंके सहयोगसे कर सकते हैं; उससे ज्यादा नहीं । मत देनेका सबको अधिकार होगा; वे एक उपसमिति या प्रबन्धकोंकी नियुक्ति करेंगे। किन्तु निषेधा- धिकार मेरे हाथ में होगा । व्यक्तिगत रूपसे मुझे लगता है कि हमें श्रीमती वेस्ट और काबा भाईको भी योजनाके सदस्यों-जैसा मान लेना चाहिए; उन्हें रुपया निकालनेके अतिरिक्त सदस्यताके और सारे अधिकार होने चाहिए। सारे निर्णय केवल बहुमतके आधारपर होने चाहिए। सभाको चलाने और उपसमिति तथा प्रबन्धकोंके कर्तव्योंके बारेमें आप नियम बना सकते हैं ।

यदि प्रेस में किसीकी पत्नी काम करती है, तो वह योजना सदस्यकी पत्नी के अधिकारोंसे वंचित नहीं होगी ।

मैं इसके साथ ७५ पौंडका ड्राफ्ट भेज रहा हूँ । उसे मेरे खाते में जमा कर दीजिए ।

श्री कैलेनबैकने यह पत्र देखा है ।

ज्यों ही श्री सैम रद किये गये बाँडको मेरे हवाले करेंगे त्यों ही मैं उनके कागजात वापस कर दूंगा ।

आपका हृदयसे,
 
मो० क० गांधी
 

पुनश्च :

आज जोहानिसबर्गमें ऐसा कोई नहीं है जो जा-जाकर चन्दा जमा करे । मेरा सुझाव है कि चन्दा जमा करनेके लिए श्री कॉर्डिस निकलें। उन्हें समय-समयपर जाते ही रहना चाहिए । चन्दा जमा करनेके बारेमें जोहानिसबर्गके कार्यालयपर कोई भरोसा न रखा जाये । मूल रकमपर जो टोटा हुआ है मैं उसे यथासम्भव जल्दी पूरा करनेका प्रयत्न करूँगा ।

मो० क० गांधी
 

पुनश्च :

मैंने ड्राफ्टपर हस्ताक्षर कर दिये हैं।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (सी० डब्ल्यू ० ४४१०) से । सौजन्य : श्री ए० एच० वेस्ट ।

१. डर्बनके एक भारतीय वैरिस्टर । देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २३७ ।

२. ये शब्द गांधीजीने पत्रके बायें कोनेपर लिखे हैं ।

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