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३५.जोहानिसबर्गकी चिट्ठी'
[ बुधवार, दिसम्बर २९, १९०९]
 
क्रूगर्सडॉर्पका सत्याग्रह

सर्वश्री आमद वाजा, मुसा वाजा और सुलेमान हुसेनपर चलनेवाले मुकदमेकी सुनवाई पिछले मंगलको हुई। इन सबको प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत देश-निकाला देनेकी तजवीज की जा रही थी। श्री गांधीने बचाव पक्षकी ओरसे इजलासमें हाजिर हो कर दलील दी कि :

[ मौजूदा मामलेमें ] प्रवासी अधिनियम बिलकुल लागू नहीं हो सकता, क्योंकि इन सबने स्वेच्छासे पंजीयन-प्रमाणपत्र ले रखे थे। यह सच है कि उन्होंने अपने पंजीयन प्रमाणपत्र दिखानेसे इनकार किया; क्योंकि आन्दोलन ही प्रमाणपत्र न दिखानेका है। कानूनमें ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके आधारपर पंजीयन-प्रमाणपत्र पेश करनेसे इनकार करनेवाले लोग निर्वासित किये जा सकते हों; अलबत्ता उनको जेलकी सजा दी जा सकती है ।

इसपर सरकारी वकीलने उनको प्रिटोरियासे प्राप्त आदेश पढ़ कर सुनाये । मुकदमेका फैसला बुधवारके लिए मुल्तवी कर दिया गया।"

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १-१-१९१०


१. यह 'जोहानिसबर्ग' के साप्ताहिक खरीतेसे लिया गया एक उद्धरण है। यह खरीता लगभग नियमित रूपसे ३-३-१९०६ के बाद इंडियन ओपिनियन में आता रहा (देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २०४ और २१५-१६) । प्रारम्भमें खरीतेका नाम • जोहानिसबर्गकी चिट्ठी', (खबरपत्र जोहानिसबर्ग) था परन्तु ‘खबरपत्र' शब्द १६-१०-१९०९ से हटा दिया गया ।

२. भारतीय व्यापारी ।

३. मुकदमा ३० दिसम्बर, बृहस्पतिवार को शुरू हुआ; देखिए "ट्रान्सवालकी टिप्पणियों", इंडियन ओपिनियन, १-१-१९१० ।

४. मैकिंटायर की दलीलें सुननेके बाद अदालतने इस बार हुक्म सुनाया कि प्रतिवादी निर्वासित कर दिये जायें । निर्वासन सर्वोच्च न्यायालय में अपीलके फैसलेके बाद हो ।



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