पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१५६

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३७. अपने विषय में

इस अंकसे यह पत्र कुछ बदली हुई वेशभूषामें प्रकाशित हो रहा है। आकार भी घटा दिया गया है। ट्रान्सवालके संघर्षसे हमारे साधनोंपर बहुत अधिक भार पड़ा है। पुराने आकार-प्रकारको कायम रखना हमारे लिए अब बहुत कठिन हो गया है। हमारे अधिकतर पाठक जानते हैं कि यह पत्र व्यावसायिक दृष्टिसे नहीं चलाया जाता । परन्तु 'इंडियन ओपिनियन' जिस समाजके हितोंका रक्षक है, उसकी सेवा करनेकी हमारी शक्ति सीमित है और पाठक पत्रका जो यह रूपान्तर देखेंगे वह इसी कारण आवश्यक हो गया है। हम बड़ी अनिच्छासे केवल किफायत करनेके लिए- • इसका आवरण-पृष्ठ हटा रहे हैं जिसका रंग हमने खास तौरसे चुना था । यद्यपि आकार छोटा कर दिया गया है तथापि हमें आशा है कि हम कुछ संक्षेप करके उतनी ही जानकारी देते रहेंगे। हमारे पाठक जिन्हें इस पत्रके आदर्शोंमें दिलचस्पी है. उन आदशोंमें जिन्हें हम आगे बढ़ानेका उद्योग करते हैं - इस पत्रके ग्राहक बनाकर उपयोगी सेवा कर सकते हैं; यह पत्र उनका अपना कहा जा सकता है। हम साधन बढ़नेपर सामग्रीमें विविधता भी लाना चाहते हैं । अतः अधिक अच्छे समाचार हम कब दे सकेंगे, इसका जवाब स्वयं पाठकोंके सहयोगपर निर्भर है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१-१९१०

३८. लेखा-जोखा

बरस आते हैं और जाते हैं। हम हर बरस समाजकी स्थितिका लेखा-जोखा करते हैं। ट्रान्सवाल सत्याग्रहने शेष सभी चीजें ढाँक ली हैं। सत्याग्रह संघर्ष में बहुत- सी जानने योग्य बातें घटी हैं। एक शिष्टमण्डल भी विलायत गया था। इस संघर्षसे अनेक लाभ हुए हैं। हम साहसपूर्वक कह सकते हैं कि संघर्षके कारण दक्षिण आफ्रिकामें हमारे खिलाफ अनेक कानून बनते-बनते रह गये। इसके कई उदाहरण पाठकको आसानीसे दिखाई दे सकते हैं। इसके सिवा सत्याग्रहके अभ्याससे प्राप्त शैक्षणिक मूल्यको तो आँका ही नहीं जा सकता । प्रत्येक व्यक्ति समझ सकता है कि इस संघर्षको चलाना अपने आपमें एक उपलब्धि है। ट्रान्सवालका संघर्ष अभी जारी है। भारतीय बहुत कमजोर हो गये। अगर वे कमजोर न पड़ते तो संघर्ष समाप्त हो चुका होता । किन्तु संघर्षके लम्बे चलनेसे समाजकी कोई हानि नहीं हुई। जहाँ आत्मबलकी बात है वहाँ उसका जितना उपयोग किया जाये उतना अच्छा । आत्म- बल तो विद्याकी तरह बरतनेसे बढ़ता है। फिलहाल संघर्षका स्वरूप उत्तम है।