जल्दी ही बन्द हो जाये, उसका प्रयत्न 'इंडियन ओपिनियन' के प्रत्येक पाठकको करना चाहिए, ऐसी हमारी सलाह है।
[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१-१९१०
प्रिटोरियाकी नगर-परिषद् काले लोगोंकी कट्टर विरोधी है। प्रतिवर्ष जब परीक्षाएँ होती हैं तब विद्यार्थी टाउन हॉलमें बैठते हैं। इस बार एक काफिर परीक्षामें सम्मिलित हुआ। उसी हॉलमें गोरे थे। इसलिए परिषद्ने नाराज होकर परीक्षकोंको नोटिस दिया कि गोरोंके हॉलमें काफिरको बैठाया गया, इस कारण आय उन्हें वह हॉल नहीं दिया जायेगा। तब परीक्षकोंने काफिरके लिए अलग कमरेकी माँग की। परिषदने इसे भी नामंजूर कर दिया और प्रस्ताव पास किया कि काफिर या दूसरे काले लोगोंको टाउन हॉल अथवा उसका कोई अन्य कमरा कभी न बरतने दिया जाये। इस प्रस्तावको जिन गोरोंने पास किया है वे बहुत भले और विद्वान माने जाते हैं। ऐसे देशमें काले लोगोंकी स्थिति बड़ी विषम हो जाती है। इस स्थितिमें हमारे विचारसे सत्याग्रहके सिवाय और कोई उपाय है ही नहीं। ऐसा अन्याय इसी कारण होता है कि गोरे लोग कालोंको अपने बराबर नहीं मानते। यह सब न हो, इसलिए हम लोग ट्रान्सवालमें लड़ रहे हैं। और जिस जातिमें इस प्रकारका तीव्र द्वेष भरा हुआ है, उसके विरुद्ध लड़नेमें [ और जीतने में समय लगना आश्चर्यकी बात नहीं है।
[ गुजरातीसे ]
श्री पोलकने हिन्दुस्तानमें अनेक काम सफलताके साथ किये हैं। दक्षिण आफ्रिका- पर पुस्तक लिखकर उन्होंने अपने इन कामोंमें एक और काम जोड़ दिया। उस पुस्तकपर होनेवाला खर्च भी हमें नहीं उठाना पड़ेगा; श्री नटेसनने उसे अपने खर्च पर प्रकाशित कर दिया है।
इस पुस्तकमें पूरे दक्षिण आफ्रिकाकी स्थितिका विवरण है। इसके चार भाग हैं। पहले भागमें दक्षिण आफ्रिकाके सभी सामान्य कानूनोंकी तफसील दी गई है। शुरू नेटालसे किया गया है। इस भागमें ९० पृष्ठ हैं। उनमें से ६९ पृष्ठ नेटालके बारेमें हैं। इनमें व्यापारिक कानून, प्रवासी कानून, गिरमिटिया कानून इत्यादिकी पूरी जानकारी
१. दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय नामक पुस्तक मद्रासमें प्रकाशित हुई ।
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