आ जाती है। व्यापारिक कानूनका विवरण देते हुए श्री हुंडामल,' श्री दादा उस्मान, ' श्री कासिम मुहम्मद, श्री वाहिद, श्री गोगा, श्री चेट्टी, श्री आमद बेमात आदिके मामले दिये गये हैं ।
गिरमिटियोंके कष्टोंके बारेमें भी बहुत-से उदाहरण दिये गये हैं।
ट्रान्सवालके संघर्षके विषयकी सामग्री ४५ पृष्ठोंमें है ।
इसके सिवाय अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियोंने जो कहा है, वह भी दिया गया है ।
"नेटालके प्रवासका कलंक " शीर्षकसे लॉर्ड क्रू के नाम श्री आंगलियाका एक सख्त
पत्र उद्धृत किया गया है। नेटालमें शिक्षा विषयक जानकारी भी दी गई है।
पुस्तकोमें केप, रोडेशिया तथा डेलागोआ-बेके कानूनोंकी जानकारी भी आ जाती यह बहुत मूल्यवान पुस्तक है और हरएक भारतीयके पास इसका होना जरूरी है। इसका मूल्य एक रुपया रखा गया है।
[ गुजरातीसे ]
वतनियों और एशियाइयोंको प्रभावित करनेवाले विनियमों (रेगुलेशन्स) के सम्बन्धमें माननीय उपनिवेश-सचिवके नाम भेजे गये पिछले महीनेकी २३ तारीखके मेरे पत्रके उत्तरमें आपका पिछले महीनेकी २३ तारीखका पत्र' मिला । मेरा संघ आपके विस्तृत, शिष्टतापूर्ण और सुलहकुल उत्तरके लिए कृतज्ञता प्रकट करता है; लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि मेरे पत्रका भाव ठीक-ठीक नहीं समझा गया है। मेरे संघको मालूम कि विभागीय विनियम या निर्देश 'गज़ट" में प्रकाशित होनेके पहलेसे मौजूद हैं। मैं तो कहता हूँ कि ये निर्देश उस समाजके सहयोगके फलस्वरूप ही बने थे, जिसका प्रतिनिधित्व मेरा संघ करता है। और ये इस बातके असंदिग्ध प्रमाण हैं कि रेलवे प्रशासन और ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्ध अभीतक मैत्रीपूर्ण रहे हैं। लेकिन अब इन निर्देशोंको कानूनकी शक्ल दी जा रही है। इससे लगता है कि ब्रिटिश
१. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३८५-८६ ।
२. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १८-२१ ।
३. इस पत्रका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था ।
४. इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१० में उद्धृत; देखिए “ट्रान्सवाल रेलवेके विनियम ", पृष्ठ १२९- ३० और १३२-३३ ।
५. देखिए "उपनिवेश-सचिवके नाम पत्रका सारांश ", पृष्ठ १०९ ।
६. तारीख १७-१२-१९०९ के ।
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