पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१६१

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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी १२१ भारतीयोंने सहिष्णुता और सहयोगकी जो भावना दिखाई है उससे प्रशासन सन्तुष्ट नहीं है। मेरे संघने विभिन्न दर्जामें पृथक् स्थान निश्चित करने और सुरक्षित ( रिजर्ड ) के लेबिल लगानेपर कभी रोष प्रकट नहीं किया है। लेकिन मेरे संघने इस स्थितिको कभी स्वीकार नहीं किया कि भारतीय समाजके सदस्योंको एक्सप्रेस गाड़ियोंसे यात्रा करनेकी सुविधाओंसे वंचित किया जाये । जैसा कि आप जानते हैं, उपनिवेशमें इस समय एशियाइयोंकी जो तीखी और थकानेवाली लड़ाई जारी है, वह कानूनी असमानता और भेदभावके कारण है, विभागीय भेदभावके कारण नहीं, जिसे उपनिवेशमें मौजूद रंग-भेद सम्बन्धी पूर्वग्रहोंको देखते हुए एशियाइयोंने उचित मान लिया है। रेलवे-निकाय (बोर्ड) ने इन विनियमोंको कानूनकी शक्ल देकर इस संघर्षकी उपेक्षा की है; और इस प्रकार जिस स्थितिके विरुद्ध मेरा संघ संघर्ष करता रहा है, उसको उग्रतर बना दिया है। मेरे संघके लिए इस बारेमें कोई राय देना मुश्किल है कि वतनी लोगोंसे बर्ताव करनेमें प्रशासनको कानूनी सत्ताकी आवश्यकता है या नहीं, परन्तु जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, शायद आप स्वीकार करेंगे कि ऐसी सत्ताकी आवश्य- कता नहीं है। इसलिए मेरे संघको भरोसा है कि इन विनियमोंको जहाँतक वे ब्रिटिश भारतीयोंको प्रभावित करते हैं, वापस ले लिया जायेगा । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१० ४३. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी [ बुधवार, जनवरी ५, १९१०] व्यापारियोंके लिए ज्ञातव्य अखबारोंमें जो एक नोटिस निकला है, उसका सार मैं नीचे देता हूँ । सब प्रकारके परवाने (लाइसेन्स) इस मासके अन्त तक ले लेने चाहिए। परवाना लेनेसे पहले प्रत्येक व्यापारका कानूनके अनुसार पंजीयन किया जाना चाहिए। जो व्यापारका पंजीयन नहीं करायेंगे, उनपर मुकदमा चलाया जायेगा और जिनके पास परवाना न होगा उनको १० प्रतिशत जुर्माना देकर परवाना लेना होगा। परवानोंकी दरें निम्नलिखित हैं: विदेशी कम्पनीके एजेंट दलाल , सामान्य व्यापारी फेरीवाला रेड़ीवाला पौ०शि० पें० १०-०-० १-०-० १-०-० १-०-० २-०-० Gandhi Heritage Portal