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पत्र: जे० सी० गिब्सनको

यह पत्र मैं बुधवारको लिख रहा हूँ। आज ही श्री जोजेफ रायप्पन और उनके साथी श्री काछलिया, श्री गांधी आदि आमन्त्रणपर बॉक्सबर्ग जानेवाले हैं। यदि लोग दुबारा जोर पकड़ लें तो तुरन्त निपटारा हो जानेकी सम्भावना है। चाहे ऐसा न भी हो, किन्तु इतना तो आवश्यक है कि लोग अपना कर्तव्य पूरा करें ।

और धन

श्री पेटिटने श्री गांधीको आज तारसे २०० पौंड और भेजे हैं।

गिरफ्तारियाँ

अभी-अभी खबर मिली है कि श्री इब्राहीम हुसेन, जो सत्याग्रही हैं और जिन्होंने नाईकी दूकान की थी, आज गिरफ्तार कर लिये गये हैं।

मोजाम्बिकसे सहायता

श्री दामोदर आनन्दजीका सत्याग्रहकी लड़ाईके निमित्त ५० पौंडका चेक प्राप्त हुआ है। मोजाम्बिकके भारतीय भाइयोंने श्री आइज़कको बहुत अच्छी मदद दी है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१०

४४. पत्र : जे० सी० गिब्सनको
जोहानिसबर्ग
 
जनवरी ६, १९१०
 

प्रिय श्री गिब्सन,

मैं इस पत्रके साथ एक ज्ञापन (मेमोरैंडम) भेजता हूँ। उसमें बताया गया है कि उपनिवेशमें एशियाइयोंकी जो तीखी और थका देनेवाली लड़ाई चल रही है वह कैसे खत्म होगी ।

मेरे ध्यानमें यह बात लाई गई है कि भारतीय समाजपर दो आरोप लगाये जा रहे हैं: पहला यह कि ब्रिटिश भारतीय अपनी मांगोंको लगातार बदलते रहे हैं; और दूसरा यह कि यहाँके आन्दोलनको पूर्णतः भारतने उभारा है और उसका नियन्त्रण भी भारतसे किया जाता है ।

१. "ट्रान्सवालकी टिप्पणियों", इंडियन ओपिनियन, १-१-१९१० में बताया गया था कि “श्री जहाँगीर पेटिटने बम्बईसे श्री गांधीको ४०० पौंड तारसे भेजे हैं । " २. पादरी चार्ल्स फिलिप्स और जे० सी० गिब्सनने ट्रान्सवालके उच्चायुक्त (हाई कमिश्नर ) लॉर्ड सेल्बोर्नसे बातचीत करनेके बाद ६ जनवरी, १९१० को गांधीजीसे भेंट की थी । यह पत्र और वक्तव्य उसीके फलस्वरूप भेजे गये थे । देखिए ७-१-१९१० को लॉर्ड सेल्बोर्नको भेजा गया उनका पत्र जो इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९१० में उद्धृत किया गया था ।



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