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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहले आरोपके सम्बन्धमें कुछ तथ्य ये हैं । १९०७के सितम्बर मासके आसपास, अर्थात् जब कैदकी सजाएँ शुरू हुई और समझौता किया गया, उससे पहले उपनिवेश- सचिवको कई हजार भारतीयोंके हस्ताक्षरोंसे एक सार्वजनिक प्रार्थनापत्र भेजा गया था। उसमें यह वाक्य आता है : 'हम सादर निवेदन करते हैं कि यहाँ उत्पन्न विषम स्थितिका सामना [पंजीयन ] अधिनियम (ऐक्ट) को पूरी तरह रद करके ही किया जा सकता है, उससे कम अन्य किसी उपायसे नहीं । इस तरह अधिनियमको रद करानेकी बात उद्देश्यके रूपमें सदा सामने रखी गई है। उस समय, या दूसरे पंजीयन अधिनियमके पास होनेसे पहले किसी भी समय, इस अधिनियमको पूरी तरह रद करके प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत कानूनी समानता फिर कायम की जा सकती थी ।

मेरा कहना है कि समझौता करनेके समय स्वेच्छया पंजीयन करानेपर इस कानूनको रद करनेका निश्चित वचन दिया गया था। जनरल स्मट्सने समझौते के दो दिन बाद अपने रिचमंडके भाषण में इस वचनका उल्लेख भी किया था। उन्होंने कहा था कि एशियाइयोंने इस कानूनको रद करनेकी माँग की है। उन्होंने उनके नेताओंसे कह दिया है कि जबतक प्रत्येक एशियाई पंजीयत न करा लेगा, वे अधि- नियमको रद नहीं करेंगे ।

जब मुझपर प्रहार हुआ था, मैंने और श्री चैमनेने एक वक्तव्य प्रकाशनके लिए तैयार किया था। उसका आशय यह था कि यदि ऐसा स्वेच्छया पंजीयन हो जाये जिससे अधिकारियोंको सन्तोष हो सके तो अधिनियम रद कर दिया जायेगा। प्रमाण- पत्रोंको जलानेके बाद कार्यकारिणी परिषदकी बैठकमें समझौता इसलिए असम्भव हो गया था कि अधिनियम रद करानेका एक आवश्यक मुद्दा, अर्थात् प्रवासके सम्बन्धमें कानूनी समानताका मुद्दा, मंजूर नहीं किया गया था, और इसी मुद्देके तय न होनेके कारण लन्दनमें अन्तिम समझौता नहीं हो पाया था। श्री डंकन जिस बातकी चर्चा कर रहे हैं उन्हें उसकी जानकारी होनी चाहिए। उनकी यह गवाही नीचे दी जाती है कि हमने अपनी माँग कभी नहीं बदली है। उन्होंने गत फरवरीके 'स्टेट" में एक लेखमें यह लिखा था :

भारतीय नेताओंकी स्थिति यह है कि वे ऐसे किसी भी कानूनको सहन न करेंगे जिसमें उनको प्रवास-सम्बन्धी प्रतिबन्धके मामलेमें यूरोपीय लोगोंके बराबर न रखा गया हो। वे इसके लिए तैयार हैं कि प्रशासनिक कार्रवाईसे एशियाई प्रवासियोंकी संख्या सीमित कर दी जाये। उनका आग्रह है कि उन्हें खुद कानूनमें ही समानता दी जाये ।

१. देखिए " भीमकाय प्रार्थनापत्र", खण्ड ७, पृष्ठ २३९-४० ।

२. ३०-१-१९०८ को, देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३९-४१ तथा ४३-४४ ।

३. ५-२-१९०८ के भाषणमें; देखिए खण्ड ८, परिशिष्ट ८ ।

४. यह प्रकाशित नहीं हुआ था और उपलब्ध नहीं है; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३२६ ।

५. पेट्रिक डंकन, स्मट्ससे पहले ट्रान्सवाल्के उपनिवेश-सचिव ।

६. 'क्लोजर यूनियन सोसाइटीज़' का मासिक मुखपत्र ।


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