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पत्र: जे० सी० गिब्सनकोपत्र

श्री डंकनने इस लेखमें माँगोंको बदलते रहनेके आरोपकी जाँच की निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि माँगें नहीं बदली गई हैं ।

आन्दोलन भारतने उभारा है और उसका नियन्त्रण भारतसे किया जाता है, इस आरोपके बारेमें मैं इतना ही कह सकता हूँ कि यह बिल्कुल निराधार है। असलमें यहाँके आन्दोलनको जिन लोगोंने थोड़ा भी समझा है, वे सभी जानते हैं कि यहाँ जो संघर्ष चल रहा है उसके राष्ट्रीय महत्त्वके बारेमें भारतमें पर्याप्त जागृति न होनेकी शिकायत थी । श्री पोलकको इसीलिए भेजा गया था। इंग्लैंडको शिष्टमण्डल भेजे जानेसे पहले कभी भारतकी ओरसे कोई आर्थिक सहायता न तो मिली थी और न अपेक्षित ही थी । आज समूचा संसार जानता है कि इस संघर्षका भारतकी राजनीतिपर न केवल प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि इसको भारतसे आर्थिक सहायता भी दी जा रही है। जो भी सहायता मिलती है पाई-पाई सार्वजनिक रूपसे छाप दी जाती है। अब हमें इस तरहकी सहायता इंग्लैंडसे भी मिल रही है ।

अन्तमें, मैं यह कहना चाहता हूँ कि यदि मेरे पत्र या इसके साथ संलग्न वक्तव्यकी कोई बात स्पष्ट न लगे तो मैं कोई दूसरा कागज भी भेजनेके लिए तैयार हूँ, बशर्ते कि उससे इस वक्तव्यका मंशा पूरा होता हो और यह मंशा है कानूनकी मंसूखी और प्रवासके सम्बन्ध में कानूनी समानता । दूसरे पंजीयन अधिनियमके बाधक होने के कारण इस एक मुद्देको दो मुद्दोंकी तरह पेश करना आवश्यक हो गया है, लेकिन मुद्दा वास्तवमें एक ही है ।

केवल आपका,
 
मो० क० गांधी
 

[ सहपत्र ]

वक्तव्य

यदि १९०७ का अधिनियम २ रद कर दिया जाये और प्रवासी अधिनियम ( इमीग्रेशन ऐक्ट ) में ऐसा फेरफार कर दिया जाये जिससे कोई सुसंस्कृत एशियाई प्रवासी बिलकुल यूरोपीयोंके समान शर्तोपर प्रवेश कर सके और उसे किसी भी पंजीयन अधिनियम (रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) का पालन करनेकी जरूरत न रहे तो ब्रिटिश भारतीय सन्तुष्ट हो जायेंगे। इस संशोधनके अनुसार प्रवासी अधिकारी शैक्षणिक जाँचका तरीका बिल्कुल अपनी मर्जीसे निश्चित करेगा और शैक्षणिक जाँचमें उत्तीर्ण हो जानेपर भी, सपरिषद गवर्नर (गवर्नर-इन-कौंसिल) को विभिन्न वर्गों और जातियोंके प्रवासियोंकी संख्या विनियम (रेगुलेशन) बनाकर सीमित करनेका अधिकार होगा। यदि १९०८ में पास किया गया दूसरा एशियाई अधिनियम मौजूद न होता तो जहाँतक एशियाइयोंका सम्बन्ध है, प्रवासी अधिनियममें संशोधन करनेकी आवश्यकता ही न पड़ती । सपरिषद गवर्नरको उक्त प्रकारके विनियम बनानेका अधिकार देनेका संशोधन हो जानेपर कानूनके प्रशासन और उसकी शब्दावलीमें बहुत अन्तर होनेकी आपत्ति भी नहीं रह जायेगी ।

१. यह दक्षिण आफ्रिकासे २३ जूनको चला था और १० जुलाई, १९०९ को इंग्लैंड पहुँचा था।

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