यदि शैक्षणिक जाँचके अन्तर्गत उपनिवेश में प्रतिवर्ष एक निश्चित संख्या में ( जैसे छः तक) भी सुसंस्कृत ब्रिटिश भारतीयोंको प्रवेश करने दिया जायेगा तो ब्रिटिश भारतीय सन्तुष्ट हो जायेंगे। ये दोनों रियायतें मिल जानेपर संघर्ष समाप्त हो जायेगा और यह प्रश्न भारतीय राजनीतिक अखाड़ेसे भी हट जायेगा । तब ट्रान्सवालमें प्रवेश पा चुकनेवाले शिक्षित भारतीय वहाँसे चले जायेंगे और यदि प्रविष्ट होना भी चाहेंगे तो वे उसकी माँग सामान्य परीक्षाके अन्तर्गत ही करेंगे ।
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (सी० डी० ५३६३) से । इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९१० से भी ।
श्री गांधीने 'अतिथियोंके ' स्वास्थ्य की कामना करते हुए उपनिवेशमें आनेका उद्देश्य केवल राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षा हम इस उपनिवेशमें अपने जातीय सम्मानकी रक्षा करने आये हैं। हम यहाँ कष्टोंसे गुजरकर अपने लोगोंको हिम्मत बँधानेके लिए आये हैं । हममें से बहुत-से जानते हैं कि यह अग्नि परीक्षा कैसी है और निःसन्देह अभी यह तो देखना ही है कि नये रंगरूट कहाँतक कष्ट सहन कर सकते हैं। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि हममें से सैकड़ों कष्ट सहनेके लिए तैयार हैं, यह शेखी हम अब नहीं बधार सकते । कोई २,५०० लोग जेल गये हैं और इनमें से बहुत से यह अनुभव करते हैं कि वे अब नहीं जा सकते। जो लोग हिम्मत हार गये हैं उनको मैं दोष नहीं देता। ऐसे लोग प्रत्येक संघर्षमें मिलते हैं। किन्तु मैं यह कह सकता हूँ कि हमारे कुछ सर्वोत्तम लोग कष्ट सहनसे स्पष्टतः पक्के बने हैं और आन्दोलन, चाहे महीनों चले या सालों, तबतक जारी रहेगा जबतक वह सफल नहीं हो जाता या वे मर नहीं जाते। स्वयं मुझे परिणामके सम्बन्धमें कोई सन्देह नहीं है। यह अग्नि-परीक्षा लम्बी चलती है या थोड़े दिन चलती है, यह मेरी दृष्टिमें अपेक्षा- कृत महत्त्वहीन है; प्रसन्नताकी असली बात तो यह है कि अब यह सिद्ध हो गया है। कि हमारे बीच अभी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने नैतिक सिद्धान्तोंकी रक्षामें अदम्य उत्साहका परिचय दिया है।
१. मेसॉनिक हॉल, जोहानिसबर्ग में सर्वश्री जोज़ेफ रायप्पन, डेविड ऍड सेम्युअल जोज़ेफ और मणिलाल गांधी के सम्मान में दिये गये एक सार्वजनिक भोजमें । इसकी अध्यक्षता विलियम हॉस्केनने की थी। उन्होंने 'सम्राट' के स्वास्थ्य की कामना की । इसमें कई भारतीय और यूरोपीय उपस्थित थे । गांधीजीके भाषणकी यह रिपोर्ट ट्रान्सवाल लीडरसे लेकर इंडियन ओपिनियन में उद्धृत की गई थी ।
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