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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए उसे सर्वत्र सहानुभूति प्राप्त होनी चाहिए। अपनी परिभाषाको स्पष्ट करते हुए लॉर्ड ह्यू सेसिलने कहा था :

स्वतन्त्रताको कायम रखनेका सच्चा आधार वह स्थिति है जिसके बिना किसी सच्चे अर्थमें सद्गुण या धर्मशीलताका होना सम्भव नहीं। सद्गुण सही काम करनेमें नहीं है, बल्कि सही काम करना पसन्द करनेमें है। मनुष्य और पशुके बीच यही सबसे बड़ा अन्तर है।

ट्रान्सवालके भारतीय सरकारकी इच्छाके सामने झुकनेके बजाय अपनी इच्छा और अन्तरात्माके अनुसरणकी शक्तिको आजमा रहे हैं, क्योंकि दोनोंकी इच्छाओंमें विरोध है। जो व्यक्ति अपनी इच्छाको दबाकर सरकारकी इच्छाका पालन करता है वह अपनी स्वतन्त्रताका त्याग करता है और इस तरह गुलाम बन जाता है। एशियाई कानून भारतीयोंपर गुलामी लादता है; क्योंकि वह उन्हें उनकी स्वतन्त्रतासे अर्थात् अपनी अन्तरात्माका अनुसरण करनेकी प्रवृत्तिसे वंचित करता है ।

लॉर्ड महोदयके शब्दोंसे आगे यह भी अर्थ निकलता है कि संसदमें अधिनियम बना देनेसे लोगोंको सद्गुणी नहीं बनाया जा सकता। अगर उन्हें कोई अच्छा कहा जानेवाला काम करनेके लिए कानून द्वारा मजबूर किया जाता है तो इसका श्रेय उन्हें उस गधेसे अधिक नहीं दिया जा सकता जो बोझा ढोनेके लिए मजबूर किया जाता है ।

इस तरह ट्रान्सवालके सत्याग्रही, दक्षिण आफ्रिकाके सबसे अधिक शक्तिशाली राज्यके विरुद्ध खड़े होकर समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी स्वतन्त्रताके लिए लड़ रहे हैं। यद्यपि वे बहुत थोड़े-से हैं तथापि उनके सामने एक महान और स्पष्ट सत्कार्य है । और इसके लिए उन्होंने जो रेकर्ड कायम किया है उसपर वे अवश्य गर्व कर सकते हैं ।

लॉर्ड ह्य सेसिलने हमें स्वतन्त्रताकी वैज्ञानिक परिभाषा तो दी, परन्तु उन्होंने यह नहीं बतलाया कि हम उसे प्राप्त कैसे करें । स्वतन्त्रताका अर्थ यदि यह है कि हम अपनी अन्तरात्माके अनुसार काम करनेमें समर्थ हों तो निःसन्देह यह समर्थता हथियारोंके बलसे अर्थात् शारीरिक हिंसासे प्राप्त नहीं की जा सकती। जबतक हमारे विरोधी अपनी भूलको समझ न लें और अपनी इच्छा हमपर लादनेका प्रयत्न करते हुए हमें सताना छोड़ न दें तबतक स्वयं कष्ट उठाकर बिना लड़े वह प्राप्त नहीं की जा सकती। इस परिभाषासे लड़ाईका यही और केवल यही तरीका स्वभावतः उपलब्ध होता है; स्वतन्त्रता प्राप्त करनेका कोई भी अन्य तरीका दूसरेके अधिकारको हड़पनेका तरीका है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१०


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