पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७. नेटालके परवाना सम्बन्धी विनियम

विक्रेता परवाना अधिनियम (डीलर्स लाइसेंसेज़ ऐक्ट) के अन्तर्गत जो विनियम हालमें ही प्रकाशित हुए हैं उनका सार' हम एक दूसरे कालममें दे रहे हैं। उनमें इसके सिवा कोई आश्चर्यजनक या नई बात नहीं है कि अपीलकर्ताको जो १२ पौंड १० शिलिंग शुल्क जमा कराना होता था वह अब भी कायम रखा गया है। हम यह राय पहले ही जाहिर कर चुके हैं कि यह शुल्क लेना गैर-कानूनी है और अपील- कर्ता इस रकमको देनेके लिए बाध्य नहीं हैं। विनियमोंसे यह साफ जाहिर होता है कि उनका मंशा भारतीय व्यापारियोंके लिए नये परवाने प्राप्त करना उत्तरोत्तर कठिन कर देना है। अगर एक फेरीवाला भी नया परवाना लेना चाहता है तो उसे अखबारोंमें विज्ञापन देनेका नाटक करना होगा और एक उलझन-भरी विधिमें से गुजरना होगा। तब कहीं वह अपनी ईमानदारीकी रोटी कमानेके लिए मेहनत कर सकेगा । कुछ न कहें तो भी यह एक निर्दय पद्धति है और इसका अर्थ है बेईमानी तथा काहिलीको बढ़ावा देना ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१०

४८. ट्रान्सवाल रेलवेके विनियम

मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धक और जोहानिसबर्गके ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके बीच आगे जो पत्र-व्यवहार हुआ है उसका सार हम प्रकाशित करते हैं। हमें विश्वास है कि पत्रकी सान्त्वनापूर्ण ध्वनिसे ट्रान्सवालके भारतीय धोखेमें आकर निष्क्रिय न हो जायेंगे । इसलिए श्री काछलियाने महाप्रबन्धकको जो जवाब भेजा है, उसका हम स्वागत करते हैं। उन्होंने लिखा है : जहाँतक संघका सम्बन्ध है, उसके लिए यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि अब भी भारतीय जनताको यात्राकी वे ही सहूलियतें दी जायेंगी, क्योंकि यद्यपि प्रशासनकी छोटी-छोटी बातोंकी जाँच कराना या उनपर आपत्ति करना महत्त्वपूर्ण मामला है, फिर भी वह संघका कर्तव्य नहीं है। उसका कर्तव्य तो सिद्धान्तोंको मान्य कराना और उन्हें स्थापित कराना है। इसमें मुख्य और एकमात्र विचारणीय मुद्दा यह है कि 'गजट' में छपनेसे पहले विनियम केवल महकमेके लिए दी गई भीतरी हिदायतोंके रूपमें थे और उनमें

१. यह यहाँ नहीं दिया गया है ।

२, सेन्ट्रल साउथ आफ्रिकन रेलवे ।

३. यह यहाँ नहीं दिया गया है ।

४. देखिए "पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको”, पृष्ठ १२०-२१ ।

१०-९


Gandhi Heritage Portal