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५०. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुसलमान

भारतीय कांग्रेसके सम्बन्ध में रायटरके जो तार' आये हैं उनका अनुवाद हम पिछली बार दे चुके हैं। लॉर्ड मॉर्लेके अधिनियम (ऐक्ट) के सम्बन्धमें कांग्रेसमें जो चर्चा हुई उससे खेद हुआ है। कांग्रेसने यह विचार प्रकट किया है कि लॉर्ड मॉर्लेने मुसलमानोंको जो विशेषाधिकार दिये हैं, उनसे हिन्दू नाराज हुए हैं और हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच अलगाव बढ़ा है। तारसे मिली खबरोंके आधारपर आलोचना करना खतरनाक है। जो लोग इन दो जातियोंके बीच फूट डालना चाहते हैं उनका एकपक्षीय तार देना आश्चर्यकी बात नहीं है। फिर भी रायटरका तार ठीक है, ऐसा समझकर हमारा विचार करना अनुचित न होगा ।

हमारे खयालसे पहली भूल यह मान लेना है कि लॉर्ड मॉर्लेके कानूनसे दोनों कौमोंके बीच कटुता पैदा हो सकती है । लॉर्ड मॉर्ले चाहे जैसा कानून बनायें, उससे दोनों जातियोंके बीच कटुता पैदा होनेका कोई कारण नहीं है ।

लेकिन हम यह मान लें कि मुसलमानोंको जितने मिलने चाहिए थे उनसे अधिक अधिकार प्राप्त हो गये हैं। यदि ऐसा हो तो भी क्या हुआ ? इसको लेकर लॉर्ड मॉर्लेसे शिकायत करनेकी जरूरत नहीं है। मुसलमानोंको ज्यादा मिले तो भी वह घरमें ही रहता है। इसमें हिन्दुओंके लिए घबरानेकी कोई बात नहीं है। इन दोनों महान् जातियोंके बीच तीसरा कोई न्याय करे, यह जबतक हम सोचते रहेंगे तबतक हम दोनोंके दोनों पददलित ही रहेंगे। परिषद (कौंसिल) में ज्यादा मुसलमान हों अथवा ज्यादा हिन्दू हों इसमें दुःख करनेकी कोई बात नहीं है । आपसी सन्देह मिटानेका रास्ता हमें तो एक ही जान पड़ता है; और वह यह कि चूंकि हिन्दू संख्या में अधिक और शिक्षामें आगे हैं इसलिए उनको झुकना चाहिए। यदि वे झुकेंगे तो कभी झगड़ेका कारण ही नहीं होगा, यह तो बिल्कुल स्पष्ट है।

आखिर, इस प्रकारकी चर्चा करके कांग्रेसने लॉर्ड मॉर्लेकी परिषद्को आवश्यकतासे अधिक महत्त्व दे दिया है। ऐसा करनेका कोई कारण नहीं है। यह परिषद् भारतको कुछ उज्ज्वल नहीं बना देगी। इससे या ऐसी और किसी परिषद्से हम लोग तभी लाभ उठा सकेंगे जब हम आपसमें एक-दूसरेका विश्वास करेंगे और अपनी आपसकी शिकायत किसी तीसरेके पास ले जानेके बजाय उसका फैसला अपने घरमें ही करेंगे ।

इतना कहने के बाद हम मुसलमान भाइयोंसे भी कहेंगे कि उन्हें कांग्रेससे नाराज़ होनेकी जरूरत नहीं है। कांग्रेस तो जैसे हिन्दुओंकी है वैसे मुसलमानोंकी भी है। वह प्रत्येक भारतीयकी है। इसमें हिन्दू कोई अनुचित बात कहें तो मुसलमान उनका,

१.१-१-१९१० के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत तारको खवरके अनुसार, अध्यक्षने अपने भाषण में कहा था कि नई प्रान्तीय परिषदों (कौंसिलों) में मुसलमानोंको अधिक प्रतिनिधित्व देनेसे हिन्दुओं और मुसलमानों में भेदभाव बढ़ा है । उसका उद्देश्य ही यह था । यह भेदभाव आगामी बहुत वर्षीतक नहीं मिट सकता ।


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