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५७. फेरीका नीतिशास्त्र

नये सत्याग्रही ( रंगरूट), सर्वश्री सैम्युअल जोजेफ, डेविड ऐंड्र और मणिलाल गांधी, जो संघर्षमें शरीक होनेके लिए ट्रान्सवाल गये हैं, कुछ समयसे वहाँ फल या सब्जी लेकर फेरियाँ लगा रहे हैं। हमें ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही श्री रायप्पन भी अपने इन साथियोंमें शरीक होनेवाले हैं । यह फेरी शौकिया गिज नहीं है। इन लोगोंने यह काम सच्चे फेरीवालोंकी भावनासे और नेकनीयतीसे शुरू किया है। ये नौजवान फल अथवा सब्जी, जो भी हो, लेकर घर-घर जाते हैं, थोड़ा-सा मुनाफा लेकर उसे बेचते हैं और उस मुनाफेको सत्याग्रह कोषमें दे देते हैं।

इन्होंने यह फेरीका काम क्यों शुरू किया, इसके कारणोंपर विचार करना जरूरी है। श्री ईसप मियाँ और इमाम अब्दुल कादिर बावजीरने अठारह महीने पहले जब इसको प्रारम्भ किया था तब उनका उद्देश्य केवल गिरफ्तार होना और दूसरे फेरी- वालोंके सामने एक मिसाल पेश करना था । ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंके सामने यह उद्देश्य सदा रहना चाहिए। परन्तु प्रस्तुत उदाहरणमें केवल इतना नहीं है। समस्त दक्षिण आफ्रिकामें जो स्वतन्त्र भारतीय हैं, उनमें से अधिकतर या तो फेरीवाले हैं या छोटे व्यापारी । सत्याग्रह केवल दूसरोंकी रक्षाका ही नहीं, बल्कि आत्म-रक्षाका भी साधन है। यह अस्त्र ऐसा है जिसका उपयोग, दूसरेकी मददके बगैर, एक आदमी भी उतने ही प्रभावशाली ढंगसे कर सकता है जितने प्रभावपूर्ण ढंगसे बहुत से लोग एक- साथ मिलकर कर सकते हैं। सत्याग्रहमें यह शक्ति स्वयं उसके सहज गुणोंसे पैदा होती है। आत्माकी शक्ति प्रकृतिकी एक महान शक्ति है। शरीर-बलके द्वारा कमजोरोंकी रक्षा होती है, यह विचार ही गलत है। वास्तवमें तो वह कमजोरोंको और भी कमजोर बनाता है; क्योंकि वह उन्हें अपने तथाकथित बचाव करनेवालों या रक्षकोंका आश्रित बना देता है । आत्मबलसे उनकी शक्ति बढ़ती है जिनके लिए इसका प्रयोग किया जाता है, और साथ ही उनकी शक्ति भी बढ़ती है जो इसका प्रयोग करते हैं। ट्रान्सवालके सत्याग्रहका हेतु यही है कि वह अधिकतर भारतीयोंको इस महान शक्तिका उपयोग करना सिखा दे, ताकि वे सच्चे अर्थोंमें स्वतन्त्र मनुष्य बन जायें । यदि सत्याग्रहका आरम्भ बजाय व्यापारियोंके फेरीवाले करते तो आज उनकी स्थिति बेजोड़ होती । वर्तमान स्थिति यह है कि उनमें से बहुत-से बुरी तरह दबा दिये जानेके कारण अब संघर्ष में नहीं रहे हैं। यह शोचनीय परिणाम स्वयं फेरीवालोंमें सच्चे नेता न होनेका है। अपनेसे बड़ा माने जानेवाले आदमीकी बात सुननेके बजाय वे अपनेमें से ही किसी आदमीकी बात जल्दी सुन और समझ सकते थे । ट्रान्सवालमें जो आश्चर्यजनक लड़ाई चल रही है, उसमें अबतक यह दोष था । उसे दूर करनेके लिए पाठशालाओंके अध्यापक और मुंशी लोग अब फेरीकी तरफ ध्यान देने लगे हैं। इसके अलावा सरकारका शायद अब यह इरादा है कि नये सत्याग्रहियों (रंगरूटों) को


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