पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३७
फेरीका नीतिशास्त्र

भूखों मार-मारकर ट्रान्सवालसे भगा दिया जाये । इसका जवाब वे फेरियाँ लगाकर दे रहे हैं जिससे कि इस उपनिवेशमें वे अपनी जीविका भी अर्जित कर सकें।

परन्तु बात इतनी ही नहीं है। क्या मुंशी अथवा मुनीमका पेशा फेरी लगानेवालेकी अपेक्षा सचमुच अधिक अच्छा या इज्जतका पेशा है, यह प्रश्न कमसे-कम विवादग्रस्त तो है ही। फेरीवाला स्वतन्त्र मनुष्य होता है। उसे मनुष्य-स्वभावका अध्ययन करनेका जो अवसर मिलता है वह उस मुंशीको नहीं मिल सकता, जो प्रतिमास कुछ पौंडोंके लिए गुलामी करता है । फेरीवाला अपने समयका खुद मालिक होता है। मुंशीके पास अपना कहने लायक समय लगभग होता ही नहीं। अगर फेरीवाला चाहे तो वह अपनी बुद्धिका विकास कर सकता है। मुंशीके लिए यह सपनेमें भी सम्भव नहीं। और जो बात मुंशीपर लागू होती है वही कम या ज्यादा शिक्षकपर भी लागू होती है। वह पढ़ानेके लिए नहीं पढ़ाता बल्कि जीविकाके लिए पढ़ाता है। और निश्चय ही यह बात वकीलके पेशेपर भी लागू होती है। वकीलोंके मार्गमें इतने प्रलोभन रहते हैं कि उनसे साधारण आदमी जितना दूर रहे उतना ही अच्छा है। इसलिए ये नौजवान इस पेशेको अपनाकर बहुत कुछ कर सकते हैं। वे उसका भोंडापन दूर कर सकते हैं और उसे ऊँचा उठा सकते हैं। फेरीवाले तो राह ही देख रहे हैं कि उनमें कोई ऐसा आदमी पैदा हो जाये जो उनको अच्छे और शुद्ध जीवनकी तरफ ले जाये । इस प्रकार ये नौजवान फेरीवालोंके सामने अच्छी मिसाल पेश करनेके साथ-साथ शिक्षकों, मुंशियों और, हम तो कहते हैं कि, उन वकीलों और डॉक्टरोंके सामने भी अच्छी मिसाल पेश कर सकते हैं जो अपने पेशोंसे ऊब गये हैं और यदि मार्ग देख सके तो वे शरीर और आत्माको पीसनेवाली मेज-कुर्सीकी गुलामीको छोड़ देंगे।

एक बात और है और कम महत्त्वकी नहीं है। हमें लगता है प्रकृति आखिर यह चाहती है कि मनुष्य अपने शरीर-श्रमसे अपने पसीनेकी कमाईसे • अपनी जीविका अर्जित करे। उसकी इच्छा यह भी है कि मनुष्य अपनी बुद्धिका उपयोग अपनी भौतिक जरूरतें बढ़ाकर आत्माका नाश करनेवाली और शरीरको कमजोर बनानेवाली विलास-सामग्रीसे अपने-आपको घेर लेनेके लिए न करे; बल्कि वह अपने नैतिक जीवनको ऊँचा उठाये, अपने सिरजनहारकी इच्छाको जाने, मानवजातिकी सेवा करे और इस तरह अपनी ही सच्ची सेवा करे। अगर यह सही है तो फेरीका पेशा, अथवा खेती या ऐसा ही कोई सीधा-सादा पेशा रोजी कमानेका ऊँचेसे ऊँचा तरीका माना जाना चाहिए । करोड़ों मनुष्य क्या यही नहीं कर रहे हैं ? निःसन्देह बहुत-से लोग अनजाने प्रकृतिका अनुसरण कर रहे हैं। अब, साधारण मनुष्यकी अपेक्षा प्रकृतिने जिन्हें अधिक बुद्धि दी है उनका काम है कि वे इन करोड़ोंका बुद्धिपूर्वक अनुकरण करें और अपनी बुद्धिको अपने मजदूर भाइयोंको ऊँचा उठानेके काममें लगा दें। तब बुद्धिजीवी लोग लकड़ी काटनेवालों और पानी खींचनेवालोंको घमण्डसे नीचा नहीं समझेंगे; क्योंकि संसार उन जैसोंसे ही तो बना हुआ है।

इसलिए हम अपने इन नौजवान मित्रोंको उनके अच्छे कामपर बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि संघर्ष समाप्त हो जानेके बाद भी जहाँतक रोजी कमानेका

Gandhi Heritage Portal