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पत्र: मगनलाल गांधीको

है -- जहाँ सरकार अत्याचार करे वहाँ उसका मुकाबला करें, साथ ही जहाँ भारतीय गलत तरीकेसे लोगोंको दाखिल करें वहाँ उनका भी मुकाबला करें। हमें स्वीकार करना चाहिए कि हमारे विरोध में बननेवाले बहुत-से कानूनोंके कारण स्पष्ट रीतिसे हम ही हैं। केवल रंग-भेदके कारण वे बने हैं, ऐसा नहीं मान लेना चाहिए। जबतक हम अपना दोष नहीं समझते, तबतक हमें सच्चा इलाज भी नहीं मिल सकता ।

इसके सिवा हमारी सलाह है कि वकीलोंकी मारफत अदालतमें लड़नेके बजाय सत्याग्रह करके लड़ना अच्छा है। प्रवासी कानूनके विरोधमें भी उसके द्वारा लड़ा जा सकता है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १५-१-१९१०

६०. पत्र : मगनलाल गांधीको
गुरुवार, जनवरी २०, १९१०
 

चि० मगनलाल,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले। मेरा वहाँ आना फिलहाल तो न हो सकेगा। मणिलाल गिरफ्तार कर लिया गया है; वह शुक्रवारको रिहा किया जायेगा । उसके बाद देखें क्या होता है। मेरा खयाल है कि जबतक यहाँ पकड़-धकड़ जारी है तबतक वहाँ न आना ही ठीक होगा ।

जैसा तुमने लिखा है, रामाके लिए व्यायाम आदिका प्रबन्ध यदि कर सको तो ठीक होगा। कॉडिसके सम्बन्धमें मैंने तुम्हें डाँटा नहीं था । इस बारेमें तुम्हें गलत- फहमी हुई मालूम होती है। तुम्हारा पत्र पढ़नेके बाद भी मुझे ऐसा ही लगता है। रामा उनके साथ सारा दिन रहेगा- मैंने ऐसा विचार कभी नहीं किया था। मेरा यह भी खयाल नहीं था कि वह विलीके साथ रहे । दिनमें जब वह काम न कर ' रहा हो, तब जहाँ चाहे वहाँ जाये। मेरी इच्छा है कि वह कॉडिसके साथ भोजन किया करे और उन्हींके साथ सोया करे । मैं नहीं मान सकता कि श्री कॉडिसके मनमें उसके प्रति स्नेह नहीं है। मुझे श्री कॉडिसकी त्रुटियोंका पता है; हममें से कोई भी दोषरहित नहीं है।

अगर तुम 'ख्यातः शक्रो भगाङ्गो " श्लोक नहीं जानते तो मैं लिख भेजूंगा । सूर्यमें धब्बे हैं। यह मान लो कि उनका अन्तःकरण मलिन नहीं है। शेष बातें स्वतः आ जायेंगी ।

१. १४-१-१९१० को

२. गांधीजीके तृतीय पुत्र रामदास ।

३. कॉर्डिसके पुत्र ।

४. भगाङ्को; देखिए "पत्र : मगनलाल गांधीको ", पाद टिप्पणी २, पृष्ठ १४६ ।

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