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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारे कुटुम्बका प्राचीन इतिहास तो अब भी बहुत बाकी है और उसे अच्छी तरह तो केवल परमानन्द भाई' जानते हैं ।

यदि बच्चोंके व्यायामके लिए छापेखानेसे समय निकल सके तो निकालना चाहिए।

'इंडियन ओपिनियन के चन्देके बारेमें एक माससे अधिकका उधार-खाता न चलाना ठीक ही है। तुम्हें एक निश्चित सीमा तक ही जोखिम उठानी चाहिए। वह रकम भले ही तुम्हारे नाम चढ़ी रहे। यह तुम्हारे चालू भत्तेमें से नहीं काटी जायेगी। दस ग्राहकोंसे अधिककी जोखिम हरगिज नहीं उठानी चाहिए। यह भी अधिक है। फिर भी तुमने जितना केप कालोनीसे लिया हो, उसका दायित्व सभीपर है, क्योंकि तुम्हें नया नियम मालूम नहीं था । मेरा खयाल यह है कि नया नियम फिलहाल तो अच्छा है।

हमें भारी बोझे उठाने हैं। इसलिए इन सबमें कमी करना उचित है। अख- बारोंमें यही प्रथा देखनेमें आती है। लोगोंको धीरे-धीरे आदत पड़ जायेगी और वे वैसा ही करेंगे । हम परवानेका शुल्क पेशगी अदा करते हैं सो एक दबावसे जोर जबर्दस्तीसे। हम जो चन्दा पेशगी लेंगे वह तो आत्मबलसे। यह आत्मबल 'इंडियन ओपिनियन'को रोचक बनानेमें निहित है। इसके लिए हमारे सामने एक ही मार्ग है कि 'इंडियन ओपिनियन 'के लिए अथक परिश्रम करें। फिर चन्दा अपने आप मिल जायेगा। इस सम्बन्धमें अधिक लिखनेका समय नहीं है।

वीरजीका पत्र आया है। उसमें उन्होंने लिखा है कि उनका इरादा डर्बनमें कार्यालय खोलकर काम करनेका है। मैं उन्हें काम सौंपना ठीक मानता हूँ। श्री वेस्टको पत्र लिख रहा हूँ। क्या तुमने उनको लिखा मेरा पिछला पत्र पढ़ा है ?

ब्रह्मचर्यका व्रत लेनेके पहले अच्छी तरह विचार कर लेना । सन्तोककी सम्मति लोगे तो और भी अच्छा होगा। कविने अपनी रचनाओंमें ब्रह्मचर्य-पालनकी जो शर्तें बताई हैं उनमें से कुछ गौर करने लायक हैं। यह एक अत्यन्त कठिन व्रत है। शिवजी भी भटक गये। इसलिए यदि हम इसका निरन्तर ध्यान रखें तो पार उतर सकते हैं। लेकिन जब मैं एक विवाहित व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नीके सम्बन्ध में ऐसा व्रत लेनेकी बात सोचता हूँ और विशेष कर अपने सम्बन्धमें, तो मेरा दिमाग काम नहीं करता । इस सम्बन्धमें मेरा भाग्य बहुत प्रबल' रहा है। मुझे मजबूरन वा से अलग रहना पड़ता है – इसी कारण मैं बहुत बच गया हूँ । यदि हम सन् १९०० से आजतक साथ-साथ रहे होते तो मैं बच पाया होता, यह कह सकना कठिन है। मेरी इच्छा है कि मेरे अनुभवका पूरा लाभ तुमको मिले ।

मेरा आना फिलहाल न हो सकेगा। इसलिए जो प्रश्न पूछने योग्य हों सो पूछना ।

मोहनदासके आशीर्वाद
 

१. गांधीजीके चचेरे भाई परमानन्ददास रतनजी गांधी ।

२. उपलब्ध नहीं है ।

३. यह शायद “ पत्र : ए० एच० वेस्टको ”, का उल्लेख है; देखिए पृष्ठ १३४ ।

४. श्रीमद् राजचन्द्र, देखिए खण्ड १, पृष्ठ ९१ ।

५. यह शब्द फोटो प्रतिलिपिमें स्पष्ट नहीं है ।

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