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ताजी रिहाइयों

[पुनश्च : ]

जयशंकर व्यासकी पत्नीका देहावसान हो गया है। तुम सब उन्हें समवेदनाका पत्र लिखना। चिरंजीव छगनलालका श्री पोलकके नाम लिखा हुआ पत्र मुझे मिला था । उसमें उसने घर-खर्चके लिए रुपयेका सवाल उठाया है। हम लोगोंने जो फेरफार किया है उसे देखते हुए अब कितनेकी आवश्यकता होगी - सो मुझे सूचित करना । इस बार तुम दो भाइयोंके बीच मुनाफेके रूपमें कितना आयेगा ? चि० छगनलालके खयालसे हर महीने ३० रुपयेकी जरूरत होगी। डॉक्टर मेहताने इसे देना स्वीकार किया है। परन्तु हमें यथा-सम्भव कम लेना है। विचार करके मुझे लिखना। मेरा आना फिलहाल न होगा। इसलिए यह बात पत्रमें चलाई है।

मोहनदास

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ५१८२) से

६१. ताजी रिहाइयाँ

ट्रान्सवालके लगभग बारह सत्याग्रहियोंकी रिहाईकी खबरसे, जो इस सप्ताह हमने अपने स्तम्भोंमें दी है, भारतीयों अथवा युरोपीयोंमें कोई दिलचस्पी नहीं पैदा हुई है। दो वर्ष पहले ऐसी घटना होती तो एशियाई प्रदर्शन करते और यूरोपीय भी इसमें कुछ दिलचस्पी दिखाते । अपने अन्तःकरणकी साक्षीपर जेल जाना और रिहा होना एशियाइयोंके लिए अब एक साधारण बात हो गई है। यह एक बहुत बड़ा लाभ है। हम चाहते हैं कि सद्गुण और साहस हमारे देशभाइयोंमें ऐसी साधारण चीजें बन जायें कि उन्हें आचरणमें लानेपर किसीको भी कोई आश्चर्य न हो । रिहा हुए भारतीयों में श्री अस्वात भी हैं जो ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक सभापति रह चुके हैं। पाठकोंको स्मरण होगा कि श्री अस्वात अपना स्वाभिमान त्यागनेकी अपेक्षा अपने सब मालकी आहुति देनेके लिए तैयार हो गये थे । अधिकांश सत्याग्रही परखे हुए योद्धा हैं और अनेक बार जेल जा चुके हैं। इस बहादुरीके लिए हम उन सबको बधाई देते हैं और यह लिखते हुए हमें सन्तोष होता है कि ज्यों ही सरकार उन्हें जेल भेजे, त्यों ही वे पुनः जेल जानेके लिए तैयार हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २२-१-१९१०
 


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