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पत्र: मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके जनरल मैनेजरको
दबावसे बिलकुल बन्द हो गये हैं और हम दब गये हैं। हम उपद्रव नहीं करते किन्तु उसके बजाय फेररकी हत्यासे अधिक बुरे काम करते हैं। थोड़े दिन हुए एक सिपाहीने कोड़ोंकी मारसे बचनेके लिए आत्म-हत्या कर ली थी। आवेशमें और अशान्तिके समय फेररको मार देनेकी अपेक्षा यह आत्महत्या अधिक रोमांचकारी घटना है। फिर भी इंग्लैंड इस मामलेमें चुप ही रहा। इसका कारण यह है कि यूरोपकी सभी जातियों में से अंग्रेज जाति ही ऐसी है, जिसपर सुरक्षित रूपसे अत्याचार किया जा सकता है ।

जिस जातिकी सभ्यता देखकर हम लोग चौंधिया जाते हैं उसकी सभ्यतामें इस प्रकारके दोष वर्तमान हैं। तब हमें विचार करना है कि हम इस सभ्यताको भारतमें रहने देंगे या समय रहते निकाल बाहर करेंगे। यह सभ्यता लोगोंको कुचल देनेवाली है और इसमें थोड़े लोग जनताके नामपर सारी सत्ता हथियाकर उसका सर्वथा दुरुपयोग करते हैं। वे ऐसा जनताके नामपर करते हैं, इससे जनता धोखा खा जाती है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-१-१९१०

६३. पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको

[ जोहानिसबर्ग ]
जनवरी २५, १९१०

महोदय,

आपका इसी २१ तारीखका पत्र मिला । अपने पत्रकी शिष्टतापूर्ण ध्वनि और अपने पूर्ण उत्तरके लिए आपने मुझे एक बार फिर धन्यवाद देनेका अवसर दिया है। और इसीलिए मुझे यह कहनेमें परेशानी होती है कि हमारे पत्र-व्यवहारका परिणाम सन्तोषजनक नहीं रहा। १. मूल अंग्रेजीमें कहा गया है : -" इसका कारण यह नहीं है कि हमने पुजारियोंका शासन हटा दिया है, और न यही कि हम धनिक वर्गके शासनमें दब गये हैं। " २ मूल अंग्रेजीमें कहा गया है : “यहाँ फेररकी मृत्युसे भी अधिक भयावनी घटनाएँ चुपचाप होती रहती हैं क्योंकि हम विद्रोहकी युक्ति भूल गये हैं।" ३. मूल अंग्रेजी में कहा गया है : “ आत्महत्याका प्रयत्न किया था । " ४. इसका मसविदा अनुमानत: गांधीजीने तैयार किया था । ५. देखिए " उपनिवेश सचिवके नाम पत्रका सारांश ", पृष्ठ १०९ । और “ पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धकको”, पृष्ठ १२०-२१; ब्रिटिश भारतीय संघके मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवेके महाप्रबन्धक के पत्रोंके लिए, इंडियन ओपिनियन, ८-१-१९१० और २९-१-१९१० और "ट्रान्सवाल रेलवे विनियम ", पृष्ठ १२९-३० और पृष्ठ १३२-३३ भी देखिए ।