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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे संघकी समिति इस स्थितिको स्वीकार करती है कि संयुक्त कर-पुस्तक (ज्वाइंट टैरिफ. बुक) में अभीतक जितनी शर्तें प्रकाशित की गई हैं, लगभग सभीके बारेमें विनियम (रेगुलेशन्स) बनानेके लिए प्रशासन विवश हो गया था। मेरी समिति आपका यह आश्वासन सधन्यवाद स्वीकार करती है कि रेलवे निकाय (बोर्ड) का मंशा एशियाई संघर्षके बारेमें कटुताका भाव पैदा करनेका नहीं है; और यह भी कि मेरा संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है उसे तेज गाड़ियोंमें यात्रा करनेकी अबतक जो सुविधाएँ दी जाती रही हैं वे बनी रहेंगी।

आपके सहानुभूतिपूर्ण रुखको देखकर, मैं यह सुझाव देनेका साहस कर रहा हूँ कि निकाय विनियमोंमें संशोधन करे, और वे इस प्रकारके बनाये जायें कि उनमें वह लांछन न रहे, जो उनसे निःसन्देह एशियाई जातियोंपर लगता है। मेरा संघ एशियाइयोंकी भावनाओंके अनुरूप विनियम बनानेके काममें निकायके साथ सहयोग करनेके लिए तैयार रहेगा, और उनको उचित रूपसे कार्यान्वित करनेमें प्रशासनके साथ पूरा सहयोग करेगा। मेरी विनम्र राय यह है कि यदि प्रशासन उन कारणोंसे, जो उसे स्वयं यथेष्ट प्रतीत हों, विभिन्न वर्गों या जातियोंको पृथक् करने और उनके लिए अलग-अलग डिब्बे सुरक्षित करनेका अधिकार ले ले तो यह कठिनाई दूर हो जायेगी। यह तो आप मानेंगे ही कि इस प्रकारका एक सामान्य विनियम बना देनेसे प्रशासनको हर मामलेमें कार्यवाही कर सकनेका प्रर्याप्त अधिकार मिल जायेगा, और उससे एशियाइयों तथा अन्य रंगदार लोगोंको यह सोचनेकी गुंजाइश भी रह जायेगी कि रेलवे-विनियम रंगदार यात्रियोंको पहले और दूसरे दर्जेके डिब्बोंमें यात्रा करनेका अधिकार न देनेके सिद्धान्तपर आधारित हैं और उनको इस प्रकारकी यात्रा केवल रियायतके तौरपर करने दी जाती है । मुझे भरोसा है कि रेलवे निकायका ऐसा कोई मंशा नहीं; उसका मंशा तो सिर्फ इतना है कि उपनिवेशमें मौजूद दुर्भाग्यपूर्ण पूर्वग्रहको तुष्ट किया जाये और इसीलिए पृथक् स्थानकी व्यवस्था की जाये। मैंने जो सुझाव रखनेका साहस किया है उससे यह मंशा अच्छी तरह पूरा हो जाता है।

आपका, आदि,
अ० मु० काछलिया
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१-१९१०



१. फास्ट ट्रेन्स ।