पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१८६

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१४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय ख्यातः शक्रो भगाङ्गो विदुरपि मलिनो माधवो गोपजातो । वेश्यापुत्रो वसीष्ठो सरूजमदमयः सर्वभक्ष्यो हुताशनः || व्यासो मत्स्योदरीय : सलवण उदधी, पाण्डवा जारजाता: । इस श्लोकके बारेमें मैं तुम्हें इससे पहले लिख चुका हूँ। चौथी पंक्ति स्मरण नहीं आती । सम्भव है हिज्जेकी कुछ गलतियाँ रह गई हों। उस पंक्तिको स्मृतिमें लानेका अवकाश नहीं है । इन्द्र भगाङ्ग हैं; ? विदुर मलिन है। माधव ग्वाले हैं, वसिष्ठ एक वेश्याकी सन्तान हैं; भौंरा कीचड़में रहता है, अग्नि सर्वभक्षी है; सागर खारा है; पाण्डव जार जातिके हैं। इस प्रकार कोई भी कलंक-रहित नहीं है। तुमने अपनी राय मुझे बताकर अच्छा ही किया है। 'इंडियन ओपिनियन' के उधार-खातेके बारेमें निर्देश देते समय सावधानीसे काम लेना । जिन कठिनाइयोंका उल्लेख तुमने किया है उनको दूर करनेका कुछ उपाय किया जा सकता है। मुझे फिलहाल सबसे अच्छा रास्ता यह दिखाई देता है कि जब नियमके अनुसार किसी ग्राहकका नाम सूचीसे हटाना पड़े, तब ऐसा तुमसे, पुरुषोत्तम- दाससे और श्री ठक्करसे पूछकर ही किया जाये। एक महीनेके बाद भी किसीके नाम अखवार जारी रखना ठीक जान पड़े तो उसे 'विचारार्थ सूची' (सस्पेन्स लिस्ट) में रखा जाये । इसका एक खाता खोल लेना । इस सुझावको श्री कॉडिसके समक्ष रखना । चि० छगनलालने जो नामावली भेजी है, उसे पूराका-पूरा इसी सूचीमें रखना अधिक ठीक होगा । १. पूरा इलोक शुद्ध रूपमें सुभाषितरत्नभाण्डागारम्‌में इस प्रकार दिया गया है : ख्यातः शक्को भगाङ्को विधुरपि मलिनो माधवो गोपजातः । वेश्यापुत्रो वसिष्ठो रतिपतिरतनुः सर्वभक्षी हुताशः ॥ व्यासो मत्स्योदरीयः सलवण उदधिः पाण्डवा जारजाताः । रूद्रः प्रेतास्थिधारी त्रिभुवनविषये कस्य दोषो न चारित ॥ इन्द्र भगांक, चन्द्रमा मलिन, कृष्ण गोपपुत्र, वसिष्ठ वेश्यापुत्र, कामदेव अशरीरी, अग्नि सर्वभक्षी, व्यास मत्स्य-कन्याके पुत्र, समुद्र खारा, पाण्डव जारज-सन्तान और शिव नरभुण्ड मालाधारी प्रसिद्ध हैं । इस प्रकार तीनों लोकोमें कोई भी दोषरहित नहीं है । २. देवराज इन्द्र गौतम ऋषिकी पत्नी अहल्यापर मुग्ध हो गये थे। एक दिन, जब ऋषि नदीपर स्नानके लिए गये थे, इन्द्र उनके घर में छद्म वेशमें घुस गये । इतनेमें गौतम आ गये और उन्होंने इन्द्रको शाप दिया कि उनके शरीरपर सहस्र भग बन जायेंगे। इससे इन्द्रका नाम भगांग या भगांक हो गया। ३. वसिष्ठ उर्वशीसे पैदा हुए थे । वह स्वर्गकी अप्सरा थी । ४. यहाँ श्लोक में शुद्धपाठ 'रतिपतिरतनुः' है जिसका अर्थ होता है - 'कामदेव अशरीरी है' । कहते हैं जब कामदेवने शिवके तपमें विघ्न डालना चाहा तब उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसे भस्म कर दिया । ५. महाराज पाण्डु रोगी और शापग्रस्त होनेसे वंश चलाने में असमर्थ थे । इसलिए उन्होंने अपनी रानी कुन्ती और माद्रीको नियोगसे वंश चलानेका आदेश दिया । फलतः रानियोंने यम, वायु, इन्द्र और अश्विनीकुमारोंसे नियोग किया और पाण्डुवंश चलाया । इसीको ध्यान में रखकर युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाँचों पाण्डव यहाँ 'जारजाताः' कहे गये हैं । Gandhi Heritage Portal