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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और वह असमर्थ रहे तो, दक्षिण आफ्रिकाके लोगोंका यह कर्तव्य है कि वे इस दासतासे, दूषित श्रमसे मुक्त हो जायें। इन मजदूरोंको नेटालके सामान्य लोगोंके लिए नहीं, बल्कि केवल कुछ धनिकोंके लिए लाया जा रहा है। अगर यह गन्दा प्रवाह बन्द कर दिया जाये तो हमें सन्देह नहीं है कि भारतीयोंका सवाल एक बड़ी हद तक खुद हल हो जायेगा। इस बीचमें अखिल भारतीय मुस्लिम लीगने, जिसके महत्त्वकी उपेक्षा निरापद रूपसे जनरल स्मट्स भी नहीं कर सकते, जिन कड़े शब्दोंमें अपनी सम्मति और सहानुभूति प्रकट की है, हम उनका स्वागत करते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-२-१९१०

७४. भारतीय व्यापारी

हमारे बीच एक कहानी प्रचलित है कि किसी मकानमें एक अहदी रहता था । उस घरमें आग लग गई। लोगोंने अहदीको समझाया कि या तो उसे आग बुझानी चाहिए या घरके बाहर निकल आना चाहिए। किन्तु वह क्यों मानने चला ? अन्तमें वह आगमें जलकर मर गया ।

यही मनोदशा भारतीय व्यापारियोंकी है। सच कहो तो दक्षिण आफ्रिकामें रहने- वाले हरएक भारतीयपर यह बात लागू होती है, किन्तु व्यापारियोंपर तो और भी अधिक । केपके अखबारोंमें फिलहाल भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध आन्दोलन चल रहा है। संघ-संसदमें शोर मचाया जा रहा है कि भारतीय व्यापारियोंको खत्म कर दो । नेटालका 'ऐडवर्टाइजर' और जोहानिसबर्गका 'संडे टाइम्स' इस पुकारका समर्थन करते हैं। एक अखबारमें ध्यान देने योग्य एक लेख छपा है; हम उसका हूबहू अनुवाद दे रहे हैं। वह जहरसे भरा हुआ लेख है। उसमें भारतीय व्यापारियोंको प्लेगकी उपमा दी गई है और लेखक कहता है कि जिस तरह प्लेगको नष्ट किया जाना चाहिए, उसी तरह भारतीयोंको भी खत्म कर दिया जाना चाहिए। पत्रके सम्पादकने इस कथनको उचित बताया है।

यदि इस हमलेके बावजूद कहानीके अहदीकी तरह भारतीय व्यापारी आलस्यमें पड़े रहे, तो वे गोरोंके द्वेषकी आगमें जल मरेंगे । गोरे व्यापारी चैन नहीं लेंगे। जिन भारतीय व्यापारियोंके पास परवाने हैं, उन्हें भी अपने आपको सही-सलामत नहीं मानना चाहिए। अखबारोंकी बातोंका जवाब देकर बैठ रहनेसे काम नहीं चलेगा।

हमने जिस लेखका अनुवाद दिया है, उसमें जो आक्षेप सच हैं, पहले तो हमें उन्हें सुधार लेना चाहिए। गलत ढंगसे लोगोंको लाना बन्द किया जाना चाहिए; दूकानें साफ रखनी चाहिए और जहाँ माल रखा जाता हो, वहाँ सोना, खाना आदि नहीं करना चाहिए ।

१. साउथ आफ्रिकन न्यूज़, १९-१-१९१० ।