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रायप्पनको सजा

पैदा होता है कि तब फिर ट्रान्सवालके कानूनके विरोधमें ही लड़नेकी क्या जरूरत है ? फिर हम सभीको माला अथवा तसबीह फेरनेकी सलाह क्यों नहीं देते ? ऐसा प्रश्न करनेवालोंसे हमारा यह कहना है कि हमने तो माला - तसबी लेनेकी सलाह ही दी है, और देते हैं। अलबत्ता, बाहरसे दिखावा करनेवाले बगला-भगतकी तरह माला फेरनेकी सलाह हम नहीं देते। हम ऊपर कहे गये प्रकृतिके खेलको भलीभाँति समझते हैं । इसीलिए ट्रान्सवालके भारतीयों और दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको पुकार कर कहते हैं कि प्रकृतिको पहचानो, उसको समझो। तुम्हारी ये बड़ी-बड़ी बातें किसी काममें नहीं आयेंगी। यदि सरकार तुम्हारी मनुष्यता हरण कर ले और तुम्हें गुलाम बना डाले, तो तुम माला ले नहीं सकते। जो खुदाका बन्दा है, वह आदमीका गुलाम हरगिज नहीं बन सकता । सरकारके अत्याचारी कायदोंसे न डरो । यदि तुम धनसे नहीं चिपकते, तो तुम्हारे लिए डरकी कोई बात नहीं है । यदि सत्यपर दृढ़ रहोगे, तो वह तुम्हारे पास ही रहेगा, तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा; बाढ़ उसे बहा नहीं सकती। हमारी सलाह है कि हमें ऐसी किसी भी चीजका मोह नहीं करना चाहिए, जो बाढ़में डूब सके । हम कहते हैं कि सत्य जो पकड़ रखने योग्य है, उसीका आग्रह रखना चाहिए। सत्यपर दृढ़ रहकर तुम जो सुख भोग सको, वह भोगो । ऐसा करते हुए तुम्हें पछताना नहीं पड़ेगा। तब तुम भोगोंके प्रति आसक्त नहीं बनोगे, क्योंकि तुम समझ जाओगे कि वे आज हैं, कल नहीं हैं; और सत्य तो सदा रहनेवाला है और सदा तुम्हारे साथ रहेगा । ऐसा करना धर्म है। सरकार अत्याचार करके इसके आड़े आती है, इसलिए हम उसे अधर्मी कहते हैं। सत्यमें ही सारे धर्मोंका सार आ जाता है और बिना इसके कोई भी धर्म शोभा नहीं पा सकता ।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन,' ५-२-१९१०
 
७७. रायप्पनको सजा

श्री जोज़ेफ रायप्पन, श्री डेविड ऐंड्र तथा श्री सेम्युएल जोजेफको तीन-तीन महीनेकी सज़ा मिली है। उन्हें हम बधाई देते हैं। हमारा विश्वास है कि श्री रायप्पन के कारावासके विरोध में सारे भारतमें आवाज उठाई जायेगी । यह कोई मामूली मामला नहीं है। संघर्षमें श्री रायप्पनके आनेसे बड़ा बल मिला है, इसमें सन्देह नहीं । सभी गोरे विचारमें पड़ गये हैं कि श्री रायप्पनको सज़ा क्यों दी गई ।

तमिल समाजने कमाल कर दिया। फिलहाल उसी समाजके भारतीय जेल जाते हुए देखे जा रहे हैं। शेष समाजोंमें से ज्यादातर लोग भाग गये हैं। श्री रायप्पन और उनके साथियोंका कौन अनुकरण करेगा ?

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ५-२-१९१०
 

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