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८२. भाषण : चीनियों द्वारा आयोजित पादरी जे० जे० डोकके स्वागत समारोहमें

{{right[ जोहानिसबर्ग
फरवरी १४, १९१० ]}} श्री गांधीने बोलते हुए कहा कि श्री डोक जबसे दक्षिण आफ्रिका में रहते हैं तभीसे एशियाइयों में दिलचस्पी ले रहे हैं। दोनों समाजोंको यूरोपीय समिति जो सहायता देती है उसका पात्र बनना है । {{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-२-१९१०}}

८३. डोकका सम्मान

[फरवरी १८, १९१० के पूर्व ] इसे सभी स्वीकार करेंगे कि श्री डोकने भारतीय और चीनी समाजके लिए बहुत कुछ किया है। दोनों ही समाजोंने उनकी कीमत समझी है। और उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट किया है। चीनियोंने मानपत्र दिया है। भारतीय भोज देंगे। श्री डोकने सत्याग्रहका भली-भाँति अध्ययन किया है। वे कुछ दिनों विलायतमें रहेंगे और उस अवधिमें लॉर्ड क्रू आदिसे भेंट करेंगे। श्री डोककी बातपर उन्हें ध्यान देना पड़ेगा। श्री डोकका जोहानिसबर्ग में कम प्रभाव नहीं है। श्री डोककी भलमनसाहत और सादगीसे बहुत-से भारतीय परिचित हैं। उनके कामकी जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। शिष्टमण्डल जब विलायत गया था तब श्री डोकने बड़ा परिश्रम किया था । {{left[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-२-१९१०}} १. यह कैन्टोनीज़ क्लबमें क्विनके सभापतित्वमें हुआ था। इसमें १५० चीनी सत्याग्रही तथा कई प्रमुख यूरोपीय और भारतीय मौजूद थे । क्विनने ढोकके कार्यकी प्रशंसा में भाषण दिया और उनको अभिनन्दन- पत्र भी दिया । उसके बाद गांधीजीने सभामें भाषण दिया । २. देखिए पिछला शीर्षक । ३. देखिए “भाषण : पादरी जे० जे० डोकको दिये गये भोजमें”, पृष्ठ १६६-६७ । Gandhi Heritage Portal