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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है और समाजको भी उसका लाभ दिया है । इमाम साहबके कामपर हमीदिया अंजुमन और सारे भारतीय समाजको अभिमान हो सकता है । उनकी तबीयत गिर गई है और शरीर रुग्ण है। उन्होंने इस सबकी परवाह नहीं की और समय-समयपर जेल जाते रहे। जबतक समाजमें ऐसे लोग हैं, तबतक कौन कह सकता है कि हम हार जायेंगे ।

हम तीनों सत्याग्रहियोंको धन्यवाद देते हैं और ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि वह उनको सदा सन्मति दे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-२-१९१०

९०. भाषण : डर्बनकी सार्वजनिक सभामें

फरवरी २०, १९१०

श्री रुस्तमजीका पत्र सभामें मिला। उससे प्रकट होता है कि वे यहाँ जानबूझकर नहीं आये हैं । यह पूरा पत्र सभाको पढ़कर सुनानेकी आवश्यकता नहीं है; लेकिन इस पत्रके द्वारा वे सभासे पूछ रहे हैं कि जिन सभाओं में उन्हें और अन्य सज्जनोंको ट्रान्सवालके लिए विदा किया गया था उन सभाओंका उत्साह आज कहाँ गया । उसी प्रकार वे यह भी पूछते हैं कि जो सज्जन उनके साथ जानेवाले थे वे कहाँ हैं । आगे चलकर वे कहते हैं कि उन्हें इस प्रकार नाटकीय ढंगसे सम्मान देना उनकी हँसी उड़ानेके समान है। इसलिए वे इस प्रकारका सम्मान लेनेके लिए तैयार नहीं हैं । वे मानते हैं कि उनका सच्चा सम्मान तो उनकी तरह जेल जानेसे होगा । श्री गांधीने कहा कि आज मंचपर जो कुछ हो रहा है, वह तो पर्देके बाहरका दिखावा है । परन्तु पर्दे के भीतर जो कुछ हो रहा है उसपर ही अपनी हार-जीतका दारोमदार है । आज जिन सज्जनोंने' ट्रान्सवालको मदद देनेके सम्बन्ध में भाषण दिये और सत्याग्रहियोंको मुबारकबादी दी उन्होंने यदि यह सब हृदयसे किया हो तो संघर्षका अन्त समीप ही है । यदि हमारे नेता दिखावा करना बन्द कर दें तो जीत आसान होगी । हमारा संघर्ष चार दिनमें समाप्त होता है या चार वर्षमें, यह हमारे ही हाथमें है । यदि वह लम्बा चलता है तो दोष हमारा अपना ही है। संघर्ष के अन्तके सम्बन्धमें जब-जब मेरा अनुमान गलत निकला तब-तब मुझे उसका कारण यह दिखाई दिया कि समाजकी शक्तिके विषय में मैंने गलत अनुमान लगा लिया था। इस बार जब मैं यहाँ आनेके लिए घरसे चला तब श्री अस्वात, श्री काछलिया और श्री भायातने मुझपर दाउद सेठको साथ लाने के सम्बन्धमें बहुत जोर दिया। सभी पूछते हैं कि दाउद सेठ अब क्या करेंगे ?

१. गांधीजी और रुस्तमजीका सम्मान करने और ३ पौंडी कर, गिरमिटिया प्रथा और प्रवासी कानून संशोधक विधेयकके विरुद्ध आपत्ति प्रकट करनेके लिए २०-२-१९१० को नेटाल भारतीय कांग्रेसकी एक सभा की गई थी।

२. उपस्थित सज्जनोंमें श्री दाउद मुहम्मद भी थे जो सभापतिके नाते गांधीजीसे पहले बोले ।