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पत्र: उपनिवेश सचिवको
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मैं दाउद सेठ, श्री शापुरजी रांदेरियाको तथा अन्य सज्जनोंको, जो भी मेरे साथ चलें, अपने साथ ले जानेके लिए आया हूँ । हमारे ही भाई सरकारको खबर देते हैं कि पुराने भारतीय हारते जाते हैं और जो लोग नेटाल गये हैं वे वापस आनेवाले नहीं हैं। यदि यह बात सच हो जाये तो इससे संघर्षको बड़ा धक्का पहुँचेगा। इस कारण मैं आशा करता हूँ कि ये सज्जन इस समय तैयार होंगे । दूसरे, जातिकी एकताके विषयमें यहाँ जो बहुत-कुछ कहा गया है उसके बारेमें मेरा कथन यह है कि यदि दोनों समाजोंमें फूट है तो इसमें दोष दोनों समाजोंके नेताओंका ही है । यदि लोग भाषण देनेके उपरान्त एकता करनेके अपने निश्चयको कार्य रूपमें परिणत करें तो एकता आसानीसे हो सकती है। यह मानना भ्रम है कि कोई बाहरी व्यक्ति आकर उनमें एकता करा देगा। जिन्हें एकता कायम रखनी है, वे ही उसके लिए उत्तरदायी हैं । {{left[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०}}

९१. पत्र : उपनिवेश-सचिवको'

{{right[ जोहानिसबर्ग ]
फरवरी २३, १९१०}} महोदय, श्री पारसी रुस्तमजीने डीपक्लूफ जेलमें अपने साथ किये गये सलूकके बारेमें अखबारोंको जो पत्र लिखा था मैं उसकी नकल संलग्न कर रहा हूँ। साथ ही, मैं उस डॉक्टरी प्रमाणपत्रकी नकल भी संलग्न कर रहा हूँ जो जेलसे छूटनेपर उनके पारिवारिक चिकित्सकने उनके स्वास्थ्यकी दशाके बारेमें दिया था : {{rightफर्स्ट एवन्यू डर्बन
फरवरी १६, १९१०}} मैं इसके द्वारा प्रमाणित करता हूँ कि मैंने श्री पारसी रुस्तमजीको शरीर- परीक्षा की है; मैं उनको बहुत समयसे जानता हूँ और मैंने देखा है कि अब उनका वजन और डील-डौल बहुत घट गया है; हालके कारावाससे उनके स्वास्थ्यको बहुत हानि पहुँची है और उनको पहलेकी भाँति स्वस्थ होने में कुछ महीने लग जायेंगे। मैं देखता हूँ कि उनके हृदयपर प्रभाव पड़ा है, लेकिन एक ही बारकी परीक्षाके बाद पक्के तौरपर यह कहना मुश्किल है कि उसमें १. प्रिटोरिया स्थित इस पत्रका मसविदा शायद गांधीजीने बनाया था । २. देखिए परिशिष्ट २ । Gandhi Heritage Portal