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९८. डोकका सम्मान

श्री डोकके सम्मानमें जो समारोह हुआ हम उसके लिए ट्रान्सवालके भारतीयोंको बधाई देते हैं । श्री डोक जैसे निर्मल हृदय और प्रभावशाली सहयोगी थोड़े ही मिलते हैं । श्री डोकने हमारे समाजकी बड़ी भारी सेवा की है। श्री डोक ऐसे व्यक्ति हैं कि यदि हमें जेल जानेसे मुक्ति मिले तो वे जेल जानेको तैयार हैं । इस आयोजन में जो भारतीय उपस्थित थे उन्होंने देखा होगा कि आजसे तीन बरस पहले हम ऐसा आयोजन करनेमें असमर्थ होते । जो गोरे हमारे साथ बैठनेमें भी शर्माते थे वे आज हमारा मान करनेके लिए एकत्र होते हैं और हमारी पंक्ति में बैठते हैं। यह कोई जबरदस्त बात हो गई, ऐसा हम नहीं कहना चाहते; बल्कि यह बताना चाहते हैं कि पहले हमारी कैसी अधम अवस्था थी । यह सारा परिवर्तन सत्याग्रहके बल- पर हुआ है । अब यदि लोग और जोर लगा सकें तो और आगे बढ़ा जा सकता है। हमारी कामना है कि इस सम्मेलनसे भारतीय समाज यह सबक लेगा कि अपने बलसे बढ़कर बल नहीं है। हम जितना कष्ट उठायेंगे उतने बलवान होंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०

९९. डर्बनमें आयोजन

श्री पारसी रुस्तमजी, श्री शाह तथा श्री शेलतके आगमनपर डर्बनमें स्वागत आयोजन किये जा रहे हैं। कांग्रेस तथा काठियावाड़ आर्य-मण्डलने समारोह किये। उसमें जेल जानेवालोंका बखान किया गया। जेल जानेवाले कहते हैं, "हमें प्रशंसा नहीं चाहिए " । भाषण और स्वागत आयोजन यों ठीक हैं; किन्तु अब उनमें कोई सार नहीं है । काम करनेमें ही सब कुछ है । भारतीय संस्थाएँ अगर चुप रहकर अपना कर्तव्य करती चली जायें तो जल्दी ही कार्यकी सिद्धि हो सकती है। संघर्षसे सम्बन्धित उनका कर्तव्य एक ही है, लड़नेवालोंको तैयार करना और मैदानमें भेजना। हमारे कहनेका अर्थ यह है कि डर्बनमें खुद कहनेवालोंको तैयार होना चाहिए। यदि संस्थाओंके पदाधिकारी ईमानदार हैं तो वे दूसरोंको भी समझा सकेंगे। यह अवसर दम्भ और दिखावेको एक तरफ रखकर मैदानमें कूदनेका है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०

१. गांधीजी इस समय ढर्बनमें थे । २. देखिए "भाषण : डर्बनकी सार्वजनिक सभामें”, पृष्ठ १७०-७१ 1 ३. “भाषणः काठियावाड़ आर्य मण्डलमें", पृष्ठ १७३ । Gandhi Heritage Portal