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१००. अब्दुर्रहमानका गुस्सा

केप टाउनकी परिषद (टाउन कौंसिल) में प्रस्ताव पेश हुआ कि युवराजके आगमनके अवसरपर सजावट आदिपर खर्च के लिए १,५०० पौंड मंजूर किये जायें । डॉक्टर अब्दुर्रहमानने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा : इससे किसी काले आदमीको खुशी नहीं होगी। मुझे आशा है कि कोई काला आदमी राज-गीत' नहीं गायेगा । मैं तो कदापि नहीं गाऊँगा । युवराजको आते देखकर किसी काले आदमीको प्रसन्नता नहीं होगी, क्योंकि उसे बराबर यह बात खटकती रहेगी कि ५० बरसोंसे उसका जो अधिकार चला आ रहा था आजका दिन उसे पूरी तरह छीन लेनेका दिन है । उन्होंने आगे कहा : केपमें ३५,००० करदाता । इनमें ५० प्रतिशत काले हैं। यह बात, राग-रंग और सजावटके लिए उनकी जेबसे पैसा लेनेकी है। मैं काले आदमीकी हैसियतसे इस काममे शरीक नहीं हो सकता। मेरे लिए तो यह दिन मातम मनानेका दिन होगा। जिस तरह काले आदमीका अधिकार छीना गया है, यदि किसी अंग्रेज अथवा आयरिशका छीना गया होता तो वह अंग्रेज या आयरिश, जितनी नरमीसे मैं बोल रहा हूँ, उतनी नरमी से न बोलता । वे तो अपने अधिकारके लिए अपना खून बहाने को तैयार रहते हैं । डॉक्टर अब्दुर्रहमान के ये वचन कटु हैं किन्तु हैं वाजिब । प्रस्ताव मंजूर तो हो गया; किन्तु डॉक्टर अब्दुर्रहमानके शब्द सदा गुंजते रहेंगे। यदि दूसरे काले आदमी उनका अनुसरण करने लगें तो उनके दुःखका शीघ्र ही निवारण हो जाये । हम डॉक्टरके इन शब्दोंमें राजद्रोह नहीं देखते । वास्तविक भक्ति कड़वी भी होती है । मुँह से 'जो हुकुम' कहना ही वफादारी नहीं है। जो मनमें है वही कहना चाहिए, वही करना चाहिए • सच्ची वफादारीकी यही निशानी है । हम आशा करते हैं कि उन्होंने जो कुछ कहा है वैसा ही वे कर दिखायेंगे और जब युवराज आयेंगे तब राग-रंगमें भाग नहीं लेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०

१. 'गॉड सेव द किंग' से अभिप्राय है । २. २६-२-१९१० के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित भाषणकी रिपोर्टसे । Gandhi Heritage Porta