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१०१. नेटालमें शिक्षा

[ भारतीय ] उच्चतर शालाओंमें [ प्रवेशके लिए ] उम्रकी जो कैद थी, वह हट गई है । यह सन्तोषकी बात है। किन्तु ऐसा माननेका कोई भी कारण नहीं है कि यह बड़ी जीत हुई । जोत इसी बातमें है कि नेटालकी सरकारने थूक कर चाटा । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि इससे हमारे बाल-बच्चे पढ़-लिख लेंगे । भारतीय माता-पिताका कर्तव्य तो यह है कि वे जल्दीसे-जल्दी अपनी शालाएँ खोलें । उच्चतर शालाओंकी शिक्षापर भरोसा नहीं किया जा सकता। उनमें दी जानेवाली शिक्षा केवल तोता-रटन्त है और वहाँ देशभक्तिका लेश भी नहीं सिखाया जाता ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०

१०२. भाषण : डर्बन भारतीय समिति में

फरवरी २६, १९१०

डर्बन भारतीय समिति (सोसायटी) के तत्वावधान में समितिके सभाभवन १०४, क्वीन स्ट्रीट, डर्बनमें २६ फरवरी शनिवारको भारतीयोंकी एक असाधारण रूपसे मनो- रंजक और प्रातिनिधिक सभा हुई। सभाभवन खचाखच भरा था और सभा बहुत ही अनुशासन-बद्ध थी । देशबन्धु दाउद मुहम्मद अध्यक्ष चुने गये और उपस्थितजनोंमें प्रसिद्ध सत्याग्रही देशभक्त मो० क० गांधी, देशबन्धु यू० एम० शेलत और नानालाल शाह भी थे । ... मन्त्री देशबन्धु ए० डी० पिल्लेने इन कुशल सत्याग्रहियोंका स्वागत किया...|

तब देशबन्धु टी० ए० सुबरामनिया आचार्यने, जिन्होंने ट्रान्सवाल भारतीयोंके संघर्षमें शामिल होनेका निश्चय किया है, तमिलमें भाषण दिया ।...
इसके बाद देशभक्त मो० क० गांधी और अन्य सत्याग्रहियों को मालाएँ पहनाई गई ।...
देशभक्त मो० क० गांधी तुमुल हर्षध्वनिके बीच स्वागतका उत्तर देने के लिए उठे ।

उन्होंने कहा कि सभी भाषणोंने उन्हें बहुत प्रभावित किया है। उन्होंने श्री नायकरको अनाक्रामक प्रतिरोध संघर्षमें शामिल होनेकी सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि संघर्ष अब भी उतनी ही जोरसे चलाया जा रहा है और दृढ़ निश्चयकी भावना भी दिखाई जा रही है। सत्याग्रहकी विजय अवश्य होगी, क्योंकि उसका उद्देश्य महान और न्याय- संगत है एवं भारतीयोंने उस उद्देश्यको प्राप्त करने के लिए अन्ततक संघर्ष जारी रखनेका १. देखिए “ भारतीयोंकी शिक्षा ", पृष्ठ १७६ । २. इसका एक संक्षिप्त विवरण ५-३-१९१० के इंडियन ओपिनियनमें छपा था ।