पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

१८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेवालेको जितना लाभ होगा उतना ही समस्त देशको होगा। जिन्दगी में हमेशा अपना फर्ज अदा करते जाना ही सच्ची शिक्षा है ।

इस सम्बन्धमें श्री गांधीने श्री नायडूका उदाहरण देते हुए कहा :

सभी लोग मानेंगे कि उन्हें दूसरोंसे अधिक सच्ची शिक्षा मिली है। उन्होंने त्याग करनेमें कुछ उठा नहीं रखा। जिस प्रकार सुकरातने प्रसन्नतासे विषका प्याला पी लिया था, उसी प्रकार नायडूने भी किया है। विशेषतः उपनिवेशियोंको उनका अनुकरण करना है। सत्याग्रहमें मिले कारावाससे मनुष्य पवित्र, सत्यवादी और शूरवीर बनता है।

श्री गांधीने माननीय प्रोफेसर गोखलेका तार पढ़कर सुनाते हुए कहा :

यह तार यहाँके समाचारपत्रोंमें छप चुका है और उसपर जो टीकाएँ हुई हैं उनसे प्रकट होता है कि यह प्रश्न चारों ओर जोर पकड़ रहा है। अब हमारा कर्तव्य है कि हम ट्रान्सवालकी जेलोंको भर दें और उसकी सूचना माननीय गोखले और महाविभव आगा खाँको देकर उनके हाथ मजबूत करें ।'

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-३- १९१०

१०४. भारतीय परिषद और गिरमिटिया मजदूर

माननीय गोखले और उनके साथियोंने भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंका नेटाल भेजना बन्द करनेके सम्बन्ध में [ भारतीय परिषद अर्थात् इंडियन कौंसिलमें] प्रस्ताव रख- कर हमारी और सामान्यतः भारतकी (और हम तो समझते हैं, उपनिवेशकी भी) सेवा की है। प्रस्तावमें कहा गया है कि दक्षिण आफ्रिकाकी स्वतन्त्र भारतीय आवादीकी शिकायतोंको दूर न करनेके दण्ड-स्वरूप गिरमिटकी प्रथा बन्द कर दी जाये। हम तो चाहते थे कि प्रोफेसर गोखले ऊँचेसे-ऊँचे दृष्टिकोणको अपनाते या अपना सकते और इस आधारपर कि यह प्रथा स्वतः बुरी है और स्वयं गिरमिटिया मजदूरोंको भी इससे कोई लाभ नहीं है, इसे पूरी तरहसे बन्द करनेका प्रस्ताव रखते तो अधिक अच्छा होता । प्रस्तावमें एक कमजोरी है, जिसे स्वीकार न करना निरर्थक है । अगर यह प्रथा स्वयं उन मजदूरोंके लिए लाभदायक हो जो कि गिरमिटमें बँधना चाहते हैं तो नेटाल और अन्य उपनिवेशोंके स्वतन्त्र भारतीयोंके स्वार्थकी दृष्टिसे उनको उसका लाभ उठानेसे नहीं रोका जाना चाहिए; परन्तु अगर वह बुरी है तो उसके कारण स्वतन्त्र भारतीयोंको प्राप्त होनेवाली किसी भी राह्तके बावजूद ऐसी कोई स्थिति जारी नहीं रखी जानी चाहिए जो स्वतः अनैतिक हो या अन्य प्रकारसे हानिकर हो ।

परन्तु आज तो समझौते और तात्कालिक लाभका जमाना है। इसलिए हमें छोटी-छोटी कृपाओंके लिए भी कृतज्ञ होना पड़ता है। प्रोफेसर गोखलेने यह छोटा-सा

१. यहाँ इंडियन ओपिनियन में, छपी रिपोर्टसे पूर्ति की गई है । Gandhi Heritage Portal