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भारतीय परिषद और गिरमिटिया मजदूर

कदम उठाना इसलिए उचित समझा कि क्योंकि वे जानते हैं, सरकार गिरमिटकी प्रथाको निन्दनीय ठहरानेमें शायद उनका साथ न दे। हम लोगोंको, जो यहाँ हैं, यह देखना है कि हम किसी अनैतिक समझौतेको स्वीकार न करें। हम सामान्य शिकायतें दूर करानेके लिए आन्दोलन करेंगे एवं हम यह बतायेंगे कि नेटाल भारतके गिरमिटिया मजदूरोंका लाभ नहीं उठा सकता ( यद्यपि यह शंकास्पद है) और ऐसा हमें करना भी चाहिए । लेकिन हमें यह भी स्पष्ट बता देना चाहिए कि हम इस प्रथाको उसके अपने दोषके कारण और स्वयं गिरमिटमें बँधनेवाले मजदूरोंके नैतिक क्षेमके लिए हानिकर होनेके कारण बन्द कराना चाहते हैं ।

सर जेम्स लीज़ हलेटने एक पत्र प्रतिनिधिको बताया है कि उनकी सम्मतिमें भारत में आन्दोलनका कारण भारतीय व्यापारियोंकी ओरसे किया गया प्रचार है । यह बिलकुल सही है । परन्तु स्थानीय संसदके गत अधिवेशन में [ भारतीयोंको ] दी गई तथाकथित राहत से यह आन्दोलन मर जायेगा, यह निष्कर्ष निकालना बिलकुल गलत है । सर जे० एल० हलेट और उनके साथी बागान मालिकोंसे हम प्रार्थना करना चाहते हैं कि वे इस प्रश्नको विशुद्ध दक्षिण आफ्रिकी दृष्टिकोणसे देखें। क्या वे यह बात समझ ही नहीं सकते कि उनके स्वार्थ उपनिवेशके भी स्वार्थ हों, यह आवश्यक नहीं है; और उपनिवेश चाहता है कि गिरमिटिया मजदूरोंका लाना तुरन्त और पूर्ण रूपसे बन्द कर दिया जाये ? हम नहीं मान सकते कि यदि चीनी और चायके उद्योग न रहेंगे तो उपनिवेशका सर्वनाश हो जायेगा। भारतीयोंने अपनी बाग-बगीचेकी पैदावारसे उपनिवेशको लाभ पहुँचाया है। स्वतन्त्र भारतीय आबादी इसे बरकरार रखेगी। परन्तु यह गिरमिटकी प्रथा जितनी जल्दी समाप्त कर दी जाये उतना ही अच्छा है। हम तो चाहते हैं कि इस प्रथाको भारत सरकारके बन्द करनेकी अपेक्षा स्वयं उपनिवेश ही अपनी तरफसे बन्द कर दे । इसके साथ ही यह आवश्यक है कि भारतमें इस परम अभीष्ट परिणामको प्राप्त करनेका कोई प्रयत्न उठा न रखा जाये; फिर वह चाहे दण्डके रूपमें हो, चाहे अन्य किसी रूप में । भारतसे नेटालको इस कृत्रिम प्रवासके पूर्णतः बन्द होते ही दक्षिण अफ्रिकाकी बहुत-सी कठिनाइयाँ बहुत कुछ अपने-आप हल हो जायेंगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-३-१९१०

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