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शर्म की बात

करते हैं और उन्हें सलाह देते हैं कि वे लड़ाईका महत्त्व समझकर इसमें ठीक तरहसे जुट जायें। यह काम विशेष रूपसे अगुओंका है। अगर ये लोग मजबूत हो जायें तो सम्भवतः सब कुछ ठीक हो जायेगा । अगुए ढीले हैं, इसीलिए समस्त जाति ढीली जान पड़ती है। उक्त लक्षणोंको देखकर भी अगुए लोग पस्त रहेंगे तो फिर दोष किसे दिया जाये ?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-३ - १९१०

१०८. शर्मकी बात

[ नेटाल ] 'मर्क्युरी' से मालूम हुआ है कि लगभग सौ भारतीय यात्री 'केंजलर 'से डर्बन आये हैं । ये सब ट्रान्सवाल जानेवाले हैं। यहाँ के [प्रवासी] विभाग ( इमीग्रेशन डिपार्टमेंट) की व्यवस्था यह है कि ट्रान्सवाल जानेके लिए पास दे देता है और भारतीय ट्रान्सवालमें पहुँच जाते हैं ।

जेल जाना तो एक ओर रहा, लोग ट्रान्सवाल जाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिए इतने अधीर हो गये हैं कि वे बिना सोचे ट्रान्सवालमें आग में पतंगोंकी तरह चले आते हैं।

दूसरी ओर देखें तो ट्रान्सवालमें भारतीय और चीनी जेलमें जा रहे हैं। नेटालसे भी भारतीय लड़ाईमें जानेके लिए तैयार हुए हैं ।

इन स्थितियोंमें भारतीय तुरन्त समझ सकते हैं कि लड़ाई किस कारण लम्बी हो रही है। सत्याग्रहीको तो धीरज धरना ही है । भले ही कुछ भारतीय बेशर्मी से ट्रान्सवालमें जाकर गुलामी मंजूर करें, उनको मुक्त करनेके लिए सत्याग्रही तो लड़ेगा ही । ऐसा करनेसे उनकी भी आँखें खुलेंगी जो गुलामीमें पड़े हैं।

डर्बनके भारतीय इस सम्बन्धमें बहुत काम कर सकते हैं । वे ट्रान्सवाल जानेवाले अधीर भारतीयोंको समझा-बुझाकर रोक सकते हैं। ऐसा करनेसे एक भारतीय भी रुक जायेगा तो प्रसन्नताकी बात होगी। जो लोग जेल नहीं जा सकते वे यह काम कर सकते हैं। कांग्रेस, आर्य मण्डल और दूसरी संस्थाएँ इस सम्बन्धमें बहुत अच्छा काम कर सकती हैं। क्या वे करेंगी ?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-३ - १९१०

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